Book Title: Tattvagyana Balpothi Sachitra
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 25
________________ जीव के छह स्थान तीर्थंकर भगवान कहते है। (१) शरीर जीव नहीं है । शरीर से बिलकुल भिन्न जीव एक स्वतन्त्र व्यक्ति (तत्त्व) है । उदाहरण के तौर पर किसी के शरीर में भूत होता है उस प्रकार जीव शरीर में कैद बना हुआ है । जीव हाथ को ऊंचा करता है तभी वह ऊंचा होता है । (देखिये चित्र-१) एक हाथ खडा हुआ है, जबकि दूसरा हाथ बेचारा ऐसे ही पड़ा हुआ है। जीव आज का नहीं, सदा जीवित है, नित्य है । पेड़-पौधे, पानी, कीडे-मकौडे, पशु-पक्षी वगैरह अनन्त शरीर में कैद होता हुआ और वहां से छूटता जीव आज यहाँ आया है । वापिस यहाँ से चला जानेवाला है.... कहाँ ? कर्म ले जाये वहाँ...(चित्र-२) शरीर में कैद होने का कारण - जीव ने वैसे कर्म किये हैं । जीव अच्छे-बुरे कर्मों का कर्ता है । हिंसा, असत्य, धनसंग्रह, आरम्भ-समारभ्भ-वगैरह पाप करके कर्म बाँधता है । जब तक कर्मबंधन चालु है तब तक संसार में भटकने का क्रम चालु ही रहनेवाला है । (चित्र-३) जीव कर्म का भोक्ता भी है । अपने किये हुए कर्म का फल जीव को स्वयं ही भोगना पडता है । स्वयं को सुख-दुःख स्वयं ही के कर्म से मिलता है | पुण्य कर्म से सुख मिलता है और पाप-कर्म से दुःख मिलता है | पुण्य कर्म को भोगने मनुष्यलोक या स्वर्ग में और पापकर्म को भोगने तिर्यंच या नरक में जाना पडता है । (चित्र-४) कर्म के बन्धन से हमेश के लिए छुटकारा भी हो सकता है । जैसे कि जेल आदि में बेडी के बंधन से बँधा हुआ कभी हमेशा के लिए मुक्त हो सकता है | सर्व कर्मों का सर्वथा क्षय हो तो अवश्य मोक्ष मिल सकता है | फिर कभी भी कर्म नहीं लगते हैं | संसार में भटकना नहीं पड़ता है । देव-नरक-मनुष्य-तिर्यंच आदि चारगति में से एक में भी जन्म मरणादि दुःख भोगने नहीं पडते है । (चित्र-५) (६) मोक्ष : हमेशा के लिए संसार से छूटकारा और अनन्त ज्ञान-दर्शन, अनन्त आनन्द से भरपूर भरा हुआ । ऐसा मोक्ष प्राप्त करने के लिए सभी ही कर्मों का नाश करना चाहिए। उसका उपाय क्या है ? जिन कारणों से कर्मों का बन्धन होता है उनसे विपरीत कारणों से अर्थात् जिनभक्ति, तपस्या, व्रत, नियम, दान, सदाचार, शास्त्रश्रवण, अहिंसा, सत्य, नीति, सामायिक, प्रतिक्रमण, चारित्रपालन, पाप प्रायश्चित्त आदि से कर्म टूटते हैं। ये छह सम्यक्त्व के स्थान कहलाते है । (१) आत्मा है, (२) नित्य है, (३) कर्म का कर्ता है, (४) कर्म का भोक्ता है.(५) उसका मोक्ष है, (६) मोक्ष का उपाय है। www.jainelibrary.cal

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