Book Title: Tattvagyana Balpothi Sachitra
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 35
________________ विश्व (द्रव्य और पर्याय)) विश्व क्या है? द्रव्यों का (छह द्रव्यों का) समूह विश्व है । छह द्रव्यों में आकाश एक द्रव्य है । आकाश के अमुक भाग में बाकी के जीव, पुद्गल वगैरह पाँचों द्रव्य रहते हैं - इतने भाग को लोक, लोकाकाश और बाकी के भाग को अलोक, अलोकाकाश कहते हैं | लोकाकाश को जैनियों विश्व या ब्रह्माण्डमानते है। (पास में लोक का चित्र है) हम लोक के मध्यभाग में जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में रहते है। इस द्वीप के चारों तरफ समुद्र,द्वीप, समुद्र,द्वीप ऐसे असंख्य द्वीप-समुद्र है । बीच में मेरुपर्वत है | उसके आसपास सूर्य-चन्द्र घूमते हैं। उनके सतत फिरते रहने से दिन-रात होते हैं। ऊपर १२ देवलोक हैं, उनके ऊपर ग्रैवेयक देवविमान (देवों में ही अलग-अलग प्रकार) हैं। इनके उपर पाँच अनुत्तर देवविमान हैं। इसके ऊपर सिद्धशिला है । सिद्धशीला के उपर मोक्ष प्राप्त किये हुए सिद्ध भगवन्त बिराजते हैं। अपनी पृथ्वी के नीचे व्यंतर देवों के नगर हैं। उनके नीचे भवनपति देवों के भवन हैं । उनके नीचे नरक जीवों के७ नरक स्थान है। द्रव्य यानी क्या? जिसमें गुण रहते हैं, पर्याय अवस्थाएँ होती हैं, वह द्रव्य कहलाता है । उदाहरण के तौर पर सोने में पीलापन, चमक, भारीपन आदि गुण है। जंजीर, अंगूठी, घडी वगैरह उसकी अवस्थाएँ होती है । इसलिए सोना द्रव्य कहलाता है और उसकी अवस्थाएँ पर्याय कहलाती है। गुण और पर्यायवाला द्रव्य - कोष्टक । द्रव्य गुण पर्याय (१) जीव ज्ञान, दर्शन, सुख... मनुष्यपना, पशुपना, राजापना, मिखारीपना, बालपन, जवानी, संसारी, मुक्त... (२) पुद्गल रुप, रस आदि... पृथ्वीपना, मिट्टीपना, घडापना, ठीकरीपना, (मिट्टी के पर्याय)... (३) आकाश | अवकाश (जगह)दान घटाकाश, गृहकाश आदि । (४) धर्मास्तिकाय - | गतिसहायकता जीव-सहायकता, पुद्गल-सहायकता । (५) अधर्मास्तिकाय | स्थिति -सहायकता जीव-सहायकता, पुद्गल-सहायकता । (६)/ काल वर्तना-होना, अस्तित्व भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल | Jain Education International For P 33 e rsonal use only

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