Book Title: Taranvani Samyakvichar Part 1
Author(s): Taranswami
Publisher: Taranswami

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Page 8
________________ जिनवाणीभक्त, श्रीमन्त सेठ साहब का संक्षिप्त जीवन-परिचय मानोरा जिला विदिशा निवासी श्री उत्तमचन्द जी, तस्य पुत्र श्री सेठ जमनादास जी, तिनके पुत्र भी लखमीचन्द जी के दो पुत्र श्री कुन्दनलाल जी और हजारीलाल जी। श्री कुन्दनलाल जी की धर्मपत्नी श्री शक्करबाई व श्री हजारीलाल जी की धर्मपत्नी भी इन्द्राणीबाई । इस तरह इन चार और केवल चार ही प्रात्माओं का परिवार जिसने अपनी यशपूर्ण प्रतिष्ठा, धार्मिक प्रणाली, धार्मिक प्रभावनाओं और तारण साहित्य तथा दान-सम्मान द्वारा यह सिद्ध कर दिखाया कि उनका पूरा जीवन और पूरे जीवन की सब कमाई धर्मकार्यों में ही लगी, लग रही है और लगाने का ही एक मात्र संकल्प है; भावनायें हैं और उनकी अपनी स्वाभाविक वृत्ति है। भाप दोनों भाइयों और आपकी धर्मपत्नियों की एक नहीं अनेक ऐसी घटनायें हैं जो स्पष्ट कर चुकी हैं कि ये चारों ही आत्मायें साक्षात् पुण्यस्वरूप हैं और पुण्य-गति पाने की अधिकारिणी हैं। १-आपने अपने जीवनकाल में ५ तिलक प्रतिष्ठायें कराई। (१) मानौरा में, (३) १००८ श्री सेमरखेड़ी जी क्षेत्र पर (१) १००८ श्री निसई जी क्षेत्र में, जिसमें धर्मदिवाकर तारण समाजभूषण १०३ श्री पूज्य ब्रह्मचारी श्री गुलाबचन्द्र जी महाराज ने 'गृह त्याग ब्रह्मचर्य दीक्षा ग्रहण की थी। २-श्री सेमरखेड़ी जी क्षेत्र में-हजारी निवास व कुन्दन धर्मशाला का, तथा श्री सूखा निसई जो क्षेत्र में भी वारण द्वार और भी निसई जी क्षेत्र में कुन्दन कुटीर का निर्माण कराया व दीक्षा स्थान पर पक्का चबूतरा बनवाया। कुन्दन कुटीर के उद्घाटन में लगभग पांच हजार रु. खर्च किये व संस्था को दान दिया। ३-भी तारण तरण अध्यात्मवाणी जी और इस तारणवाणो ग्रंथ का प्रकाशन मारने कराया, जिन दोनों में लगभग पांच हजार रु. स्वच हुमा यो तो ठाक ही है, किन्तु यह दोनों ही प्रकाशन तारण व धर्म की स्थाई प्रभावना वाले रहेंगे यह एक बहुत बड़ी बात हुई। ४-इस तरह उपरोक्त कार्यों के साथ ही साथ समय समय पर बड़ी बड़ो पात्रभावनाएं भनेक प्रसंगों पर की, अनेक संस्थानों को यथावसर अच्छा दान दिया और अब निकट भविष्य में केवल

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