Book Title: Tarangwati Katha
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ शुद्धिपत्रकम् पृष्ठम् | पृष्ठम् पंक्ति अशुद्ध अशुद्ध योगनिष्टा-1 चेतसागू। प्रकृतानाम् शुद्धः योगनिष्ठा चेतसाम् प्रारुतानाम् मदत दृष्टव्या पपुच्छ प्रष्टव्या पप्रच्छ चेत चेतू SEXEEEEEEEEEEEEEEEEEEE. मद्भुत विश्रम्य विश्राम्यता - स्तुपा: स्तूपाः शृणु दासीभिः ___४१ | " २ *" दयादचेतो दयाद्रचेता तपः श्रेण्या तपःश्रेण्या सौर्य चकिता सौन्दर्यचकिता पणक्षन्ते गोक्षन्ते दासिभिः सव साध्य पृष्टव्य पुंगवा साध्व्याः प्रष्टव्य . For Private And Persone n

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 256