Book Title: Tarangwati Katha
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ ShriMahavir Jain ArachanaKendra Acharya:sha.kaithssagarsunGvanmandir शुद्धिपत्रकम् पृष्ठम् ॥४ ॥ ४१ २ ४२।१ " ४१/१ PARRIERRRRREKKKRKAKKKKA ४२।२ ४३।१ ४३।२ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध १४ कमलभाष्टकमकभासं रमयैव । ४५/ २ कटुंब कुटुम्ब १५/१ " स्वाकृत्य स्वीकृत्य मौदमपन्नी मीदमापन्नो विक्षाय वीक्षाय ४५/२ प्रदायित्री यस्मान् । ४५/२ क्षिपणोकरः क्षेपणीकरः ४६।१ भ्राम्यन् भ्राम्य भया " " दुखं दुखिं | ४६। २ शरन्शयां सुरनद्यां। महदूभुतम् महद्भुतम् । | " ७ नभोदीप नभो दोप " " पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ५ विच्छाया विच्छाया १२ स्वस्तुभषादि स्ववस्त्रभूषादि भृश। चित्तमुत्सुकम् गृहीतुं ग्रहीतुं क्षिप्रमुतारयिष्ये क्षिपमुत्तारयिष्ये नैवाह वाह अश्रु ११ गृहीध्वम् गृढोध्वम् ५ भागिरथी भागीरथी १. मंद मंद रहोरुदम् । रहोडोदं शनैः शनै । ११ रोधनध्वान रोदनावान११ ओष्टप्रान्तं मोष्ठपान्त KIXXXXXREAKERarwwwxxx ४११२ ४११२ ४४१२ ४५।१ ॥ १ ॥ For Private And Personlige Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 256