Book Title: Swadhyaya Shiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 10
________________ पापा परीषह, मरण, अप्रमत्तता, मोक्ष मार्ग, प्रवचन माता, कर्म प्रकृति, लेश्या आदि विषयों की चर्चा है। आचार्य शय्यंभव रचित दशवैकालिक सूत्र के १० अध्ययनों में श्रमणाचार का अच्छा प्रतिपादन है। नन्दीसूत्र देववाचक द्वारा रचित है तथा इसमें पंचविध ज्ञानों का सुन्दर निरूपण है। अनुयोगद्वार सूत्र में निक्षेप, उपक्रम, आनुपूर्वी, प्रमाणद्वार, अनुगम, नय आदि के वर्णन के साथ काव्यशास्त्र आदि के संबंध में भी जानकारी विद्यमान है। ४ छेदसूत्र हैं- दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ। छेदसूत्रों में श्रमणाचार के उत्सर्ग एवं अपवाद नियम दिये हैं। प्रायश्चित्त का विधान भी किया गया है। दशाश्रुतस्कन्ध के दस अध्ययनों में २० असमाधि दोष, २१ शबल दोष, ३३ आशातना आदि का वर्णन है। कल्पसूत्र इसके आठवें अध्ययन से प्रसूत है। बृहत्कल्पसूत्र में श्रमण-श्रमणियों के लिए कल्पनीय एवं अकल्पनीय वस्त्र, पात्र आदि का विवेचन है। व्यवहार सूत्र में विहार, चातुर्मास, आवास, पद आदि व्यवहारों का निरूपण है। निशीथ सूत्र को आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध की पांचवी चूला माना जाता है। इसमें साध्वाचार में लगे दोषों के निवारण हेतु प्रायश्चित्त की विशेष व्यवस्था है। - बत्तीसवें आवश्यक सूत्र में सामायिक आदि षड्आवश्यकों का वर्णन है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में जीतकल्प एवं महानिशीथ की छेदसूत्रों में गणना करके छः छेदसूत्र माने जाते हैं। ओघनियुक्ति-पिण्डनियुक्ति को मूलसूत्रों में गिना जाता है। वे दस प्रकीर्णकों को भी आगम में सम्मिलित करते हैं। दस प्रकीर्णक हैं- १. चतुःशरण २. आतुर प्रत्याख्यान ३. भक्त-परिज्ञा, ४. संस्तारक ५. तंदुलवैचारिक ६. चन्द्रवेध्यक ७. देवेन्द्रस्तव ८. गणिविद्या ६. महाप्रत्याख्यान १०. गच्छाचार। इस प्रकार श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में ४५ सूत्र मान्य हैं (स्थानकवासी द्वारा मान्य ३२ आगम + उपर्युक्त १३ आगम)। इस परम्परा में ८४ आगम भी मान्य हैं, जिसमें २०अन्य प्रकीर्णक, १० नियुक्तियाँ तथा ६ अन्य ग्रन्थ सम्मिलित किए जाते हैं। ___ 20 अन्य प्रकीर्णक-१. ऋषिभाषित २. अजीवकल्प ३. गच्छाचार ४. मरणसमाधि ५. तित्थोगालिय ६. आराधनापताका ७. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ८. ज्योतिष्करण्डक ६. अंगविद्या १०. सिद्धप्राभृत ११. सारावली १२. जीवविभक्ति १३. पिण्डविशुद्धि १४. पर्यन्त-आराधना १५.योनिप्राभृत १६. अंगचूलिका १७. बंगचूलिका १८. वृद्धचतुःशरण १६. जम्बूपयन्ना २०. कल्पसूत्र। स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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