Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth Author(s): Bhadreshkumar Jain Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai View full book textPage 2
________________ प्रस्तुत ग्रन्थ में महामना श्री सुमनमुनि जी महाराज के उज्ज्वल, धवल, निर्मल इन्द्रधनुषी व्यक्तित्व का विविध अध्यायों में जो विवेचन हुआ है, वह एक ऐसे निःस्पृह अध्यात्मयोगी के जीवन के शाश्वत मूल्यपरक दस्तावेज है, जो मानव मेदिनी को विपथगामिता से अपाकृत कर सुपथगामिता की दिशा में अग्रसर होते रहने की न केवल प्रेरणा ही प्रदान करेगा अपितु एक सुधासंसिक्त पाथेय का भी काम देगा। प्रस्तुत ग्रन्थ पाँच खण्डों में विभाजित है। इसके प्रथम खण्ड में आचार्यों, जन नेताओं एवं समाज सेवियों के संदेश, अभिनन्दनोद्गार, चरित नायक के जीवन की विशेषताओं को उद्घाटित करने वाली गद्य पद्यात्मक सामग्री संकलित है, जिससे मुनिवर्य के प्रति लोकमानस में परिव्याप्त श्रद्धा एवं समादर का परिचय प्राप्त होता है। द्वितीय में श्वे. स्था. जैन संघ तथा पंजाब श्रमण संघ की परंपरा, श्री सुमनमुनि जी म.सा. के प्रगुरुवर्य तथा गुरुवर्य का जीवन-परिचय उपस्थापित किया गया है, जिसकी कीर्ति-वल्लरी न केवल पंजाब तक ही सीमित है, वरन् भारतव्यापिनी है। तृतीय खण्ड में चरित-नायक के शैशव, पारिवारिक जीवन तद्गत विषम घटनाएँ, धार्मिक प्रश्रय, दिशा-बोध, प्रव्रज्या, विद्याध्ययन, विहरण, धर्म-संघ में महत्त्वपूर्ण पदोपलब्धि आदि का विवेचन किया गया है, वह इनके देव-दुर्लभ व्यक्तित्व का उत्क्रान्तिमय जीता-जागता लेखा-जोखा है। साथ ही साथ इनके जीवन के विविध प्रसंगों की चित्रात्मक झांकियाँ भी अंकित हैं। चतुर्थ खण्ड में मुनिवर्य के साहित्यिक कृतित्व और वाग्मिता का जो प्रवचनमयी पीयूषधारा के रूप में संग्रवाहित होती रही है, वर्णन है। साथ ही साथ इनके साहित्य पर समीक्षात्मक दृष्टि से चिंतन तथा इनकी सूक्तियों का आकलन किया गया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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