Book Title: Sumanimuniji ki Sahitya Sadhna
Author(s): Dulichand Jain
Publisher: Z_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf

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Page 11
________________ १०. दीर्घ दृष्टि - गृहस्थ लम्बी सूझ रखें। इससे उसका जीवन उलझन से बच जाता है। ११. विशेषज्ञ – गृहस्थ कार्य-अकार्य, करणीय-अकरणीय, स्व-पर आदि की निपुणता रखें। इस प्रकार के कुल ३५ उत्तम गुणों का वर्णन धर्म बिन्दु ग्रंथ मे बतलाया गया है। आज के युग में इन गुणों का पालन करना कितना आवश्यक है यह हम सब समझ सकते हैं। चार विभाग - प्रस्तुत पुस्तक में चार विभाग है श्रावक-स्वरूप, श्रावक द्वारा परिहार्य, श्रावक द्वारा स्वीकार्य व श्रावक द्वारा चिंतनीय, इन चारों विभागों में ३५ परिच्छेद हैं। पुस्तक के प्रारम्भ में श्रावक शब्द के बारे में सूत्रों के बड़े सुन्दर उद्धरण दिए गये हैं जिससे उसके कर्तव्यों का समुचित ज्ञान होता है । यथा १. “जो संयत मनुष्य गृहस्थ में रहता हुआ भी समस्त प्राणियों पर समभाव रखता है, वह सुव्रती देवलोक को प्राप्त करता है । २. जो व्यक्ति जीव- अजीव के ज्ञाता होते हैं, पुण्य व पाप को समझते हैं, वे तत्वज्ञानी श्रावक देव, असुर, नाग आदि देवगणों की सहायता की अपेक्षा नहीं रखते तथा इनके द्वारा दबाव डाले जाने पर भी निर्ग्रन्थ प्रवचन का उल्लंघन नहीं करते । ३. किसी के पूछने पर वे श्रावक कहते हैं, “आयुष्मान् ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सार्थक है, सत्य है, परमार्थ है, शेष सब अनर्थक है । " ( श्रावक कर्तव्य पृष्ठ १७-१८) इस ग्रंथ का परिशिष्ट बहुत ही महत्वपूर्ण है । उसमें प्राकृत विभाग में सामायिक, पच्चखाण, दया, पौषध व संवर के सूत्र दिये हैं । हिन्दी के पद्य विभाग में श्रावक श्रावक कर्तव्य Jain Education International सुमन साहित्य : एक अवलोकन सज्झाय, स्वरूप चिन्तन, अमूल्य तत्व - विचार, मेरी भावना व बारह भावना दी है तथा गद्य विभाग में छब्बीस बोल, संथारा अतिचार आदि, आठ दर्शनाचार आदि दिया है। इस प्रकार श्रावक जीवन के बारे में सभी प्रकार की उत्तम सामग्री एक ही ग्रन्थ में मिल जाती हैं । विद्वान् लेखक ने इस ग्रन्थ में मार्गानुसारी के ३५ गुण, श्रावक के २१ गुण, श्रावक की विशिष्ट साधना के २१ नियम, अमूल्य तत्व विचार, बारह भावना, चौदह नियम, छब्बीस बोल, श्रावक की दिनचर्या, भाषा - विवेक, १५ कर्मादान, १८ पाप इत्यादि का विस्तृत विवेचन किया है। इसके साथ ही श्रावक जीवन से संबंधित मंगल सूत्र व सामायिक सूत्र के मूल पाठ तथा उनकी व्याख्याएं भी दी है । जैन जीवन-दर्शन में व्यसन मुक्त जीवनाराधना पर बहुत जोर दिया गया है। श्रावक के लिए यह आवश्यक है कि वह सात व्यसनों से दूर रहे। वे सप्त दुर्व्यसन हैं - जुआ, मांस भक्षण, वेश्यागमन, मद्यपान, शिकार, चोरी और पर-स्त्री गमन । आज अपने समाज में भी ये दुर्व्यसन फैल रहे हैं । इस पुस्तक में इन दुर्व्यसनों से होने वाली हानियों पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है। गृहस्थी में रहते हुए भी जैन गृहस्थ का जीवन साधना, ज्ञान तथा आचार से युक्त होना चाहिये । वह अपने जीवन के लक्ष्य को नहीं भूले। नियमों व व्रतों का पालन करते हुए, कषाय व प्रमाद को शनैः शनैः कम करता हुआ वह जीवन को उत्कर्ष की ओर अग्रसर करे, यही श्रावक जीवन का उद्देश्य है । श्रावक सरल स्वभावी हो, गुणज्ञ हो, सिद्धांत-निपुण हो और शील सम्पन्न हो । " श्रावक - कर्तव्य" ग्रंथ को हम संक्षेप में “श्रावक जीवन की मार्गदर्शिका" कह सकते हैं, जिसमें श्रावक जीवन से संबंधित सम्पूर्ण सामग्री विस्तार से लगभग : For Private & Personal Use Only ११ www.jainelibrary.org

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