Book Title: Sumanimuniji ki Sahitya Sadhna
Author(s): Dulichand Jain
Publisher: Z_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf

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Page 19
________________ सुमन साहित्य : एक अवलोकन हैं। संस्कृत की टीका का भी आश्रय लेते थे। यही कारण है जिनमें से कुछ निम्न हैं :कि प्रतिपाद्य विषय चाहे कितना ही जटिल, शुष्क एवं श्री अमरसिंह जैन होस्टल, लाहौर (चण्डीगढ़) दुरुह क्यों न हो, आपके लिए सुपाठ्य था तथा आप उसे श्री अमरसिंह जैन जीवदया भंडार, अमृतसर अन्यों को भी समझा सकते थे। श्री अमरसिंह जैन हाई स्कूल, जम्मू __ आप एक कुशल लिपिक थे तथा आपके अक्षर श्री अमरसिंह जैन ब्लाक, जैन हायर सेकेंडरी स्कूल, बहुत सुंदर थे। आपके हाथ से लिखी हुई दो कृतियां फरीदकोट आचार्य श्री अमरसिंह व्याख्यान हाल, जैन "दया शतक” तथा “बतीस अंक बोल" आज भी उपलब्ध स्थानक, कोटकपुरा इत्यादि। इस पुस्तक का परिशिष्ट बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। __ आप एक महान् ध्यान योगी थे तथा प्रतिदिन तीन इसमें आपने आचार्यप्रवर की वंशावली, पंजाब-परंपरा, घंटों तक ध्यान किया करते थे। आपने "नमोऽत्युणं" संत-परंपरा तथा साध्वी परंपरा पर विशद प्रकाश डाला प्रणिपात सूत्र का ध्यान पांच की संख्या से प्रारम्भ करके है। श्री सुमन मुनिजी ने इस परंपरा का अत्यंत गहरा सात सौ तक बढ़ा कर ध्यान में स्मरण व रमण करने का अध्ययन करके तथा बहुत ही परिश्रम से जो सामग्री अभ्यास कर लिया था। आपके समाधि-मरण के समय एकत्रित की है वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा प्रभावशाली आपके शिष्य समुदाय की संख्या नब्बे तक अभिवृद्ध हो ढंग से प्रस्तुत की गई है। इस प्रकार पंजाब श्रमणसंघ के गई थी। उनमें से कई दीर्घ तपस्वी तथा कठोर व्रतों का गौरवपुरुष आचार्य श्री अमरसिंहजी महाराज एवं उनके पालन करने वाले थे। उनकी अनेक रोमांचकारी एवं शिष्यों के जीवन चरित्र की घटनाओं का विवरण प्रस्तुत त्याग व तपस्या की प्रेरणा देने वाली घटनाएं इस ग्रन्थ में करके लेखक ने एक ऐतिहासिक कार्य किया है जो स्तुत्य संग्रहीत हैं। है। इस ग्रन्थ की रचना के बाद पंजाब के श्रमणों एवं श्रमणियों के अनेक अभिनन्दन ग्रन्थ व चरित्र-ग्रन्थ प्रकाशित समाज सेवा के कार्य हुए हैं और उन सब में इस ग्रन्थ की सामग्री को उद्धृत आपकी प्रेरणा पाकर श्रावकों श्राविकाओं ने अनेक किया है। इससे इस ग्रन्थ का महत्त्व समझा जा सकता शिक्षालयों, छात्रावासों व ज्ञानालयों का निर्माण किया है। कर्मठ समाजसेवी एवं प्रबुद्ध लेखक श्री दुलीचन्दजी जैन का जन्म 1-11-1636 को हुआ। आपने बी.कॉम., एल.एल.बी. एवं साहित्यरत्न की परिक्षाएं उत्तीर्ण की। आप विवेकानन्द एजुकेशनल ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं तथा जैन विद्या अनुसंधान प्रतिष्ठान के सचिव हैं। आपने 'जिनवाणी के मोती' 'जिनवाणी के निर्झर' एवं 'Poarls of Jaina Wisdom' आदि श्रेष्ठ ग्रन्थों की संरचनाएं की हैं। आप कई पुरस्कारों से सम्मानित - अभिनन्दित। -सम्पादक पंजाब श्रमणसंघ गौरव आचार्य श्री अमरसिंहजी महाराज 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only ... ... ...... www.jainelibrary.org

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