Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ (४) समजाव्या ; अने बेवट मोक्ष मेलववानी रीति अने तेवा परम पद पामनारने धन्यवाद थापेलो डे. हवे आ ग्रंथ नाषामां ने तो तेनुं वली जाषान्तर रुं? एम सहज को प्रश्न उगवे तो तेनुं समाधान ए जे जे, थोमा श्रने विशेष नाघार्थवाला शब्दोनी पदरचनानो घणो गहन अर्थ तेना अपरिचित जन समुदायना समजवामां नाग्येज श्रावी शके तेवो . वली लोकनाषामां घणी जातनी नापाना शब्दो नेलसेल थयेला , तथा मुलके मुलक अने गामे गाममा केटलाक जूदा जूदा शब्दो वपराय ने अने तेनां रुपांतर जूदां जूदां श्रयेला जोवामा श्रावे हे तेथी, तेमज आ ग्रंथमां जे पद्यरचना करवामां आवेली ते मध्ये दरेक बाबतना सिद्धांत माटे जे जे दृष्टांत देखाडवामां श्रावेला बे तेनां फक्त नाम मात्रज बतावेलां बे, तेथी मूलपद्यनो जावार्थ लखी तेमां जणावेला दाखलावाला पुरुषादिना प्रबंधादि अन्य ग्रंथो तथा वृक्षमुखपरंपराधी जाणवामां आव्या मुजब था मूल साथे नाषान्तरना ग्रंथमां विवेचन पूर्वक स्पष्टीकरण साथे दाखल करवामां आवेला बे. जे वांचीने मनन करवाश्री दरेक विषयनी दृढता वेशक थवामां यत्किंचित् शक नथी. विशेष जाणवा योग अने क्वचित सांजलवामां आवेली कथाश्रो घणा विस्तारपूर्वक दाखल करी, श्रने केटलाक वखतो वखत जाणवामां आवेला पुरुषादिना प्रबंध विषयना सिकांत योग दाखल कर्या बे; के जेवांचवाश्री विषय, खरूप तात्कालिक समजी शकाय तेवू . श्रने तेवां कृत्य करनारने तेथी जे लान हानी थने तेतुरत ध्यानमां श्रावतां पोतानुं वर्त्तन लाजदायक कृत करवा तरफ दोराय तेवं बे. अने तेम थवाथी मनुष्य नव पाम्यानुं सुफल मलवाने विलंब न लागे ए निःसंदेह वात डे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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