Book Title: Suktavali Author(s): Nilanjana Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ सूक्तावली - सं. नीलांजना : 'सूक्तावली' नामना आ लघु सुभाषित संग्रहने खंभातना शांतिनाथ जैन भंडा ताडपत्रीय हस्तप्रत नं. २६४नी लालभाइ दलपतभाइ विद्यामंदिरनी फोटोस्टेट नकल ३२८७६ ना अंतिम पत्रो नं. २३-२४ परथी तैयार करवामां आव्यो छे. १ शांतिनाथ जैन भंडारनी ताडपत्रीय हस्तप्रतोना सूचिपत्रना संपादक मुनि पुण्यविजयजीए २६४ नंबरनी हस्तप्रतमां, सूक्तावली, बोधप्रदीप, सुभाषितरत्नकं अने सूक्तसंग्रह - एम चार संग्रहो छे, तेम जणावेलुं पण हस्तप्रतने अंते आवेला संग्रहनो तेमां निर्देश नथी. आ हस्तप्रतमां वच्चे आ संग्रहनुं नाम 'सूक्तावली' आपेलुं छे आ ताडपत्र हस्तप्रतमां अक्षरो घणा घसाइ गयेला ने वच्चे बच्चे अक्षरो खूटे पण छे. तेमां त्रेप पत्र नथी, तेथी ४३-४९ श्लोको मळता नथी ने ५० मो श्लोक अधूरो मळे छे. ते ज ६७मो श्लोक पण अधूरो छे तेथी कुल ६९ श्लोकोना आ संग्रहमां पूरा श्लोक ६० छे. मुनिश्री पुण्यविजयजीए आ हस्तप्रतनो समय विक्रम संवतनी पंदरमी सर्व पूर्वार्ध दर्शाव्यो छे तेथी ई.स. नी चौदमी सदीमां आ हस्तप्रत लखाइ हशे एम शकाय. आ संग्रहना कर्ता / संग्राहकनुं नाम पण मळतुं नथी. संग्रहमां मळतां सुभाि परथी तेओ धर्मे जैन हशे एम चोक्कस अनुमान करी शकाय छे. कारणके आ संग्रह शरूआतमां जिनेश्वरने वंदन करवामां आवी छे अने ते उपरांत बीजां सुभाषितोमां धर्मनी प्रशंसा करवामां आंवी छे : Jain Education International न राज्ञामाज्ञाऽत्र प्रभवति परत्र प्रतिकृतौ न पुत्रो मित्रं वा भवति न कलत्रं न सुजनः । न पतिर्वित्तं वा बहुभिरथवा किं प्रलपितैः सहाय: संसारे [विमल ? ] जिनधर्मः परमिह ॥ २१ ॥ १. Muni Punyavijayaji, Catalogue of Palm leaf Manuscripts in Śantinātha Jain Bhandara, Cambay, Part two. (Oriental Institu Baroda, 1966), pp. 412 ff. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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