Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 9
________________ प्राचार्य शान्तिसागरजी हांणीवालोंके साथ आपने अनेक भीलोंले मग, मांस एवं हिंसाका त्याग कराया था और | भूखियाके ठाकुर रसिंहजी राजाको जैनी धनवाया था, एवं उनसे एक दि. जैनमन्दिर भी बनवाया था। यह कार्य आपका बहुत प्रभावक और महान हुआ है। ईडर रहकर और भी आपने बहुत-से छोटे-मोटे कार्य किये थे । जैसे: वहांके पहाड़ी स्थानों में जगह २ दिगम्बर जैन प्रतिमाओं का अन्वेषण करना आदि। इस समय ईडरमें और अन्यत्र भी अनेक विशालकाय मनोज्ञ प्रतिमाएँ विराजमान हैं वे आपके हो मुख्य उद्योगने पृथ्वोतलसे चाइर लाई गई थी। ऐसी ही विशाल एवं अत्यन्त मनोहर दो खड्कासन प्रतिमाएं अपने ही उगागले आपने तारका सिद्धक्षेत्रके दोनों पर्वतों पर विराजमान कराई है। पम्बईमा रहकर भी अपने धार्मिक कायाने समय-समयपर सहायता पहुंचाई थी। आप भादि जैन * महासभा जैसी धार्मिक संस्थाओंके सदैवले सहायक रहे हैं और उनमें आप एक मुख्य अङ्गके नाते सदैव भाग लेते रहे हैं। बम्बईमें रहकर आपने सबसे बड़ा और स्वाक्षरों में अङ्कित करने योग्य यह काम किया था कि वहाँके प्रसिद्ध धर्मात्मा सङ्घभक्त शिरोमणि समाजरत्र सेठ पूनमचन्दजी घासीलालजी जाहेरी तथा उनके तीनों सुपुत्र-संभ शिल समाजरत्न सेठ गेंदमलजी, सेठ दाडिमचन्दजी व सेठ मोतीलालजी जब्हेरीको इस महान और असाधारण कार्य के लिये प्रेरित एवं तैयार किया कि वे परमपूज्य १८८ श्राचार्य श्रीशान्तिसागरजी महाराजके सङ्घको दक्षिणसे उत्तर भारतमें लावें। उत्तर प्रान्तके जैन समुदायके असीम कल्याणकी आपकी बड़ी प्रबल भावना और प्रेरणाका प्रभाव उक्त जरहेरी कुटुम्बपर बहुत पड़ा और परिणामस्वरूप उन्होंने इस महत्पुण्य-सम्पादक एवं जैनधर्मप्रभावक कार्यको करनेका विचार दृढ़ बना लिया। परन्तु जबतक परमपूज्च आचार्य श्री १०८ महाराजकी इच्छा दक्षिण प्रान्तसे उत्तर प्रान्तमें आनेको नहीं | हो, तबदक ५-५ लाख रुपये खर्चकर सङ्घको लाने एवं प्रतिष्ठा आदि महान कार्य कराने के विचार भी कार्यकारी नहीं हो सकते, इसलिये श्रीमान् पूज्य पं० नन्दनलालजी शामो ( वर्तमान मुनिराज १०८ श्रीसुधर्मसागरजी महाराज) स्वयं कई बार दक्षिणमें परम पूज्य आचार्य महाराज एवं सङ्घके दर्शनार्थ गये और वहां बड़ी भक्ति और नम्रतासे उनके चरणों

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