Book Title: Sudharma Dhyana Pradip Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 8
________________ देवारिधि न्यायवाचस्पति बदिगजकेसरी स्वर्गीय पं. गोपालदासजी बरयासे किया था। इसलिये आप सिद्धान्त-शाखोंके भी मर्मज्ञ विद्वान् हैं । अंग्रेजीका अभ्यास भी आपने साधारण रूपसे किया है। गुजराती और महाराष्ट्र भाषाके भी आप मा प्रकले ज्ञाता है। आयुर्वेद (वैद्यक शास्त्रोंके भी आप उत्तम विद्वान हैं. आपका वैद्यक अनुभव बहुत अच्छा माना जाता है। || आप प्रसिद्ध व्याख्याता भी हैं, किसी भी विषयका प्रतिपादन दो-दो, तीन-तीन घण्टे तक धारावाही बोलते हुये गहरे विवेचन पूर्वक करते हैं। जैसे आप व्याख्याता है, उसीप्रकार गण्य मान्य मुतेखक भी हैं। अापके लेख गृहस्थावस्थामें 'जैनगजट' आदि || पत्रोंमें सदैव निकलते रहे हैं । इसके सिवाय आपने धार्मिक एवं सामाजिक विषयोंपर अत्युपयोगी कई ट्रेक भी लिखे हैं। संस्कृत रचनाके सिवाय हिन्दी कविता भी श्राप पिङ्गल छन्दःशास्त्रके अनुसार बहुत मधुर और अतिशीघ्र || बनाते हैं। आपकी हिन्दी कविताका परिचय पाठकोंको आपकी बनाई हुई पूजनों आदिसे होगा ! चौबीस भगवानको पूजन, तारङ्गापूजन, दीपावली महावीर स्वामीकी पनन आदि कई भावपूर्ण और भक्तिरमसे समन्धित, हिन्दी भाषामें पूजनोंकी पापने रचना की है। इनमें कतिपय पूजन मद्रित भी हो चुकी हैं। आप बचपनसे ही उदारचेता, अत्यन्त सरल स्वभावी और धर्मोत्साही हैं । विक्रम सं० १६७५ में आपकी सौ. सहधर्मिणीका स्वर्गवास हो गया था । आपके एक सुपुत्र हैं जिनका नाम चिट जयकुमार है। इस समय करीब २४ IFII वर्षके हैं। इनका विवाह हो चुका है। कुछ वर्ष मोरेना विद्यालयमें संस्कृत और सिद्धान्त अन्धोंका अध्ययनकर कलकना के आयुर्वेद कालजमें ५ वर्ष अध्ययनकर अब ये पायर्वेदाचार्य हो गये हैं। साथमें सर्जरीकी शिक्षा भी आपने पाई है। Sil अंग्रेजी और बंगलाके भी आप विद्वान हैं। सुयोग्य पित्ताके सुयोग्य पुत्ररत्र होनेके कारण आप भी बहुत धार्मिक हैं । इम | समय आपने कलकत्ता में स्वतन्त्र श्रीपधालय खोल रखा है। कुछ वर्ष श्रीमान् पण्डित नन्दनलालजी शाखी ईडर और बम्बईमें रहे । ईहरमें रहकर अपने दो कार्य मुख्य | रूपसे किये थे। एक तो वहाँके शास्त्र भण्डारकी सम्हाल और अबलोकन, तथा दूसरा कार्य गुजरात प्रान्त के भाइयों में धार्मिक जागृतिका सवार। इसके सिवाय ईडर में ही अापने परमपूज्य श्री १०८ शान्ति नागरजी महाराज छांणीवालोंको उनको ब्रह्मचारी || अवस्थामें अध्ययन भी कराया था और आत्मोन्नति मार्ग में आगे बढ़ने के लिये उन्हें प्रेरित भी किया था 1 तया परमपूज्यPage Navigation
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