Book Title: Stuti Tarangini Part 02
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 436
________________ श्री पार्श्वजिनस्तुतयः विश्वस्वामी जीयात् पार्श्वः ॥ १ ॥ से जिनाः सततं सन्तु मे शान्तये ।। २ ।। ॥ ३ ॥ मोहान्धानामेकं चक्षुः सिद्धान्ते मे सिद्धिं दद्यात् रक्षतु विघ्नाच्छासनदेवी, रातु विशालां मङ्गलमालाम् ॥ ४ ॥ + ४ ( वसन्ततिलका ) * श्रीपार्श्वदेव ! जिनराजिमताऽभिराम !, कल्याणदायि ! कममानमममानमानम् | त्वं मे तनूश्च नगराज समाचल श्रीः, श्रीमत्प्रभोर्विजय सेनगुरोः प्रतापम् ॥ १ ॥ + ५ ( वसन्ततिलका ) *विश्वातिशायि ! महिमा सुरसार्थ सेव्य !, श्री श्लाध्य पार्श्वजिननायक ! पूरितार्थ ! 1 सर्वज्ञवन्द्यपरमागमवीतराग !, सर्वार्त्तिशान्तिकर ! देहि शिवश्रियं मे ॥ १ ॥ श्री गोडी पार्श्वजिनस्तुतिः । १ त्रिभुवन जनपावनमानसमानसहंस !, भारतभूमण्डलकमलविबोधनहंस ! | * इयं स्तुतिः चतुर्शः उच्चते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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