Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash Author(s): Vijaypadmasuri Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha View full book textPage 8
________________ 'दिव्यचक्षुर्ज्ञानिनो भक्तजनस्य च " इणमत्थ तप्पज्जं - " नाणीणं भत्तिप्पहाणजीवण सालीणं य होज्जा दिव्वनयणं” एत्तो इणं सिज्झइ चेव जउय भत्ती खलु इसिद्धीप अउव्वं साहणंति ॥ विहिविण्णाण बहुमाणमणसुद्धिपशुहसाहणसामग्गीए संसाहिया भत्ती होज्जा सफलप्पयाइणीतिवि विष्णकुलसुण्णेयमेव ॥ मणसुद्धीवि दव्वत्थवविहेयभावत्थवमयपागयसक्कयाइभासानिबद्धथुत्ताइयप सत्था लंबणसेवनाहीणा चेवत्ति वियाराओ मए प्पणीयाणि थुत्तचिंतामणीए विविहवित्तहिं सक्कयथुत्ताइ पागयत्युक्त्तप्पयासे य पागयथुत्ताई परमोवयारिसुग्गाहियनामधिज्ज - मईयप्पुद्धारग-तवगणगयणपहायर - परमगुरु सिरिविजयनेमिसूरीसरप्पसारणंति ॥ थुत्तप्पयणपसंगम्म पथुक्तं तित्थयराइजावणलेसोवि पर्यंसिओ, तहा पहुदेसणासरूवुवदंसणसमए अप्पियदव्वाणुओगाइपयत्थतत्तलेसोऽवि ॥ कुणमि पज्जते निवेयणमिणं, जउय एयग्गंथजुयलज्झयणज्झावणाइसुहजोगेहिं भव्वजीवा पाविऊण पहुसाहियमगं परमुल्लासा सेविऊणं तं होज्जा पुज्जपायपच्चूसाहिसरणिज्जाहिहाणपहुमया ॥ तहा छउमत्थाणमणुवओगावरणिज्जकम्मुदयमुद्दणाइजणियक्खलणी अनिवारणिज्जत्ति जओ पत्थुयग्गंथजुयले गुणग्गाहिविउहाणं जुग्गा जा काइ क्खलणा दिपिहमागच्छेज्जा, ता किवं किच्चा विणा संकोयं सूयणिज्जा, जन्तो बिइज्जावित्तीय होज्जा विसोहित्ति निवेएइ ॥ " परमोपयारिपुज्जपायायरियपुरंदरपरमगुरु सिरिविजयणेमिसूरीसरचरणकिंकरविणेयाणुविजयपोम्मसूरी ||Page Navigation
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