Book Title: Stotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Author(s): Vijaypadmasuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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संखिज्जजावाणमुष्पि सव्वविरइदेसविरइप्पमुह मुक्खसाहणप्पययाणेणं निरवहिमहोवयारा विहिया, कुणह पुज्जा तुम्हे वट्टमाणसमपविति । एवं भवईयसंखाईय लोउत्तरगुणाकड्ढाविओहं सरिता भवया विहियमगण्णुवयारावलिं तुम्हकेरप्पसायाओ म विरइए सिरिथुत्तचिन्तामणि -पागयथुत्तप्पयासाहिग्गंथे तुम्हकेर करकमलेसुं समप्पियमहप्पिणं धणं कयत्थं मण्णेमि ॥ इच्छामि निरंतरंयहमिणं, जउय तुम्हकेरपुण्णाणुहावेणं (१) पागय मागहि आसक्कयगुज्जराइभासासुं सव्वजणियसरलग्गंथरयणं किच्चा सिरिसंघाइपवित्तसुहधम्मियस्त्रित्तभत्तिविहाणावसरो (२) तुम्हारिसपरमपूयणिज्जपायगुरुदेवा (३) सिरिजिणिंद सासणसंसेवा (४) णिम्मलणिरहिलास संयम संसाहणमयसत्तियजीवणं (५) परोवयाराईणि संपुण्णप्पर मणयासाहणाइं मिलउ ममं भवे भवेत्ति ॥ विष्णवे मि हं तुम्हकेर चरणकिंकरणिग्गुण पउमाहिहविणेयाणू ॥

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