Book Title: Sthanang Sutra ka Mahattva evam Vishay Vastu Author(s): Parasmani Khincha Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 6
________________ स्थानांग सूत्र का महत्व एवं विषय वस्तु 137 गए हैं-- १. ज्ञान बोधि २. दर्शन बोधि और ३. चारित्र बोधि । इसी में तीन प्रकार के बुद्ध ? ज्ञान बुद्ध २ दर्शन बुद्ध और ३ चारित्र बुद्ध का प्रतिपादन किया गया है। 3 तृतीय उद्देशक- इसमें आलोचना सूत्र श्रुतधर सूत्र उपधि सूत्र, आत्मग्क्षसूत्र आदि ३५ सूत्रों का उल्लेख है। प्रस्तुत उद्देशक के श्रुतधर सूत्र में सूत्रकार बताते हैं कि- श्रुतधर १ सूत्रभर २ अर्धवर और ३ तदुभयधर नाम वाले हैं। चतुर्थ उद्देशक- इसमें प्रतिमा सूत्र, काल सूत्र वचनसूत्र, विशोधि सूत्र आदि ४७ सूत्रों का वर्णन है। प्रस्तुत सूत्र में वचन तीन प्रकार के कहे गए हैं १. एकवचन २. द्विवचन और ३ बहुवचन । १. स्त्रीवचन २. पुरुष वचन और नपुंसक बचन । १. अतीत वचन २ प्रत्युत्पन्न वचन और ३ अनागत वचन।" इस तरह लिंग (व्यक्ति), काल और रचना की अपेक्षा से विषय का विभाजन किया गया है। (4) चतुर्थ स्थान प्रस्तुत स्थान में चार की संख्या से संबंध रखने वाले अनेक विषय संकलित हैं। प्रस्तुत स्थान में सैद्धान्तिक, भौगोलिक, प्राकृतिक आदि अनेक विषयों के स्थानों का वर्णन है। चतुर्थ स्थान में चार उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक - इसमें अन्तक्रिया सूत्र, उन्नत प्रणत सूत्र, भाषा सूत्र सुत सूत्र आदि ४८ सूत्रों का वर्णन है। सुत सूत्र में सुत के भेदों का उल्लेख है, जिसे निशेष दृष्टि से इस प्रकार प्रतिपादित किया हैं-- १. कोई सुत अतिजात-पिता से अधिक समृद्ध और श्रेष्ठ होता है । २. कोई सुत अनुजात- पिता के समान समृद्धि वाला होता है । ३. कोई सुत अपजातपिता से हीन समृद्धि वाला होता है। ४. कोई सुन कुलाङ्गार - कुल में अंगार के समान कुल को दूषित करने वाला होता है। " द्वितीय उद्देशक- इसमें प्रतिसंलीन-अप्रतिसंलीन सूत्र, दीण-अदीण सूत्र आदि ४८ सूत्रों का वर्णन है। प्रस्तुत सूत्र के लोकरिथति सूत्र में सूत्रकार ने लोकस्थिति इस प्रकार की कही है- १. वायु आकाश पर प्रतिष्ठित है । २. घनोदधि वायु पर प्रतिष्ठित है । २. पृथ्वी घनोदधि पर प्रतिष्ठित है । ४. त्रस और स्थावर जीव पृथ्वी पर प्रतिष्ठित हैं। तृतीय उद्देशक- इसमें क्रोध सूत्र भाव सूत्र, उपकार सूत्र, आश्वास सूत्र आदि ६३ सूत्रों का वर्णन है। लेश्या सूत्र का वर्णन करते हुए सूत्रकार ने असुरकुमारों की चार लेश्याओं का कथन इस प्रकार किया है-- १. कृष्ण लेश्या २. नील लेश्या ३. कापोत लेश्या और ४. तेजो लेश्या इसी प्रकार पृथ्वीकायिक अपकायिक, वनस्पतिकायिक जीवों, वाणव्यन्तर देवों और असुरकुगारों की लेश्याओं का विवेचन किया गया है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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