Book Title: Sthanang Sutra ka Mahattva evam Vishay Vastu Author(s): Parasmani Khincha Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 9
________________ 140 जिनवाणी- जैनागम - साहित्य विशेषाङ्क स्थिति सूत्र, इन्द्रियार्थ सूत्र, क्रोधोत्पत्ति स्थान सूत्र आदि ९३ सूत्रों का उल्लेख है । प्रस्तुत स्थान में श्रमण धर्म सूत्र में श्रमण धर्म दस प्रकार का कहा गया है जैसे- १. क्षान्ति (क्षमा धारण करना) २ मुक्ति (लोभ नहीं करना) ३. आर्जव (मायाचार नहीं करना) ४. मार्दव (अहंकार नहीं करना) ६. सत्य (सत्य वचन बोलना) ७ संयम धारण ८ तपश्चरण ९ त्याग (सांभोगिक साधुओं को भोजनादि देना) १०. ब्रह्मचर्यवास (ब्रह्मचर्य पूर्वक गुरुजनों के पास रहना) । इस तरह स्थानांग सूत्र में चारों अनुयोगों का समावेश है। मुनि कन्हैयालाल 'कमल' ने अपनी आगमिक दृष्टि से कहा है- स्थानांग में द्रव्यानुयोग के ४२६ सूत्र, चरणानुयोग के २१४, गणितानुयोग के १०९ और धर्मकथानुयोग के ५९ सूत्र हैं। इसकी विषय वस्तु के उक्त विवरण में संस्कृति के सभी तथ्यों का समावेश हो गया है। यह ऐसा आगम है जिसमें सिद्धान्त, दर्शन, नीति, न्याय आदि के स्थानों पर संख्या की दृष्टि से विवेचन किया गया है। यह कोई कथाग्रन्थ नहीं है और न ही सैद्धान्तिक, दार्शनिक आदि विषयों की विस्तृत विवेचना करने वाला आगम है। फिर भी विषय वर्गीकरण की दृष्टि से यह अंग आगम एक विश्वकोष हैं। इसमें दस स्थान अध्यायों के प्रतीक हैं। संदर्भ ०१. नन्दीसूत्र सूत्र ८२ "ठाणेणं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्ढीए दसढाणगविवढियाणं भावाणं परूवणा आधविज्जति ।" ०२ कसायपाहुड : 1/123 "ठाणं णाम जीवपुग्गलादीणामेगादि एगुत्तरकमे गठाणाणि वण्णेदि ।" ०३. नदीसूत्रचूर्ण: पृ. ६४ "ठाविज्जति त्ति स्वरूपतः स्थाप्यते प्रज्ञाप्यंत इत्यर्थः ।" ०४. कसायपाहुड : १/११३/६४-६५ "एक्को चेच महप्पा सो दुवियप्पो तिलक्खणो भणिओ । चतुसंकमणाजुतो पंचग्गुणप्पहाणो थे ।। छक्कायक्कमजुतो उवजुत्तो सत्तभंगिसब्भावो । अट्ठासवो वट्ठो जीवो दसट्टाणिओ भणिओ" ।। ०५. आगम साहित्य मनन और मीमांसा पृ. ९६ : ०६. व्यवहार सूत्र : पृ. ४४९, "तओ थेरभूमिओ पण्णत्ताओ, तं जहा जाइथेरे सुयथेरे, परियायथे रे । सठिवासजाए समणे णिग्गंथे जाइथेरे ठाणांग- समवायांगधरे समणे णिग्गंथे सुयथेरे । वीसवासपरियाए समणे णिग्गंथे परियायथेरे।" ०७. व्यवहार सूत्र : ३/३/६८ "ठाणसमवायधरे कप्पई आयरित्ताए उवज्झायत्ताए गणवच्छे इयत्ताए उद्दिसित्तए" ०८. (क) स्थानांगवृनि : पत्र ३ (ख) तत्र च दशाध्ययनानि" ०९. स्थानांग १/२ १०. वही : १/ २१४, “एगा तित्थसिद्धाणं वग्गणा एवं जाव ।" १५. वही २४१ "जीवच्चेन, अजीवच्चेव, तसच्चेव, थावरच्चेव ।" १२ वही : २४४४३ "परिणया चेव, अपरिणया चेन ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10