Book Title: Sramana 2011 01 Author(s): Sundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 9
________________ सम्पादकीय :vii लेख पूर्व में प्रकाशित है अथवा अप्रकाशित है, कहीं अन्यत्र भी प्रकाशनार्थ भेजा है या नहीं। सन्थारा एवं ध्यान पर विशेषांक निकालने की योजना हैं अतः सुधि लेखकों से निवेदन है कि इन विषयों पर अपने लेख प्रेषित करें। पाठकों से निवेदन श्रमण के लेखों की गुणवत्ता के सन्दर्भ में आप अपने सुझाव अवश्य भेजें। हम उसे अगले अंक में आपके नाम के साथ 'पाठकों की दृष्टि में शीर्षक के अन्तर्गत स्थान देंगे। इस विशेषांक के सन्दर्भ में आप अपने सुझाव अवश्य भेजें जिससे प्रेरित होकर हम जून-जुलाई २०११ में अध्ययनार्थ समागत विदेशी विद्वानों के लेखों के प्रकाशन पर विचार कर सकें। समीक्षार्थ पुस्तक प्रेषकों से निवेदन कृपया समीक्षार्थ पुस्तकों को भेजते समय उसकी दो प्रतियां भेजें क्योंकि एक प्रति हम समीक्षक को देते हैं तथा दूसरी पुस्तकालय में रखते हैं। एक प्रति भेजने पर हम समीक्षा नहीं करा सकेंगे, केवल साभार-प्राप्ति दिखा सकेंगे। विदेशियों के अंग्रेजी लेखों को हमने उनकी ही भाषा शैली में प्रकाशित किया है। अतः उनकी प्रूफरीडिंग आदि में समागत त्रुटियों के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। दिनांक १६ अप्रैल २०११ को आने वाली महावीर जयन्ती पर संपादक-मंडल की अग्रिम मंगल-कामना है। इस विशेषांक के प्रकाशन में अपने सभी सहयोगियों का आभारी हूँ। डॉ.शुगनचन्द जैन का विशेष रूप से आभारी हूँ जिनकी लगन का यह परिणाम है। डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, संयुक्त सम्पादक ने अंग्रेजी लेखों की प्रूफ रीडिंग के साथ-साथ बड़े मनोयोग पूर्वक अंग्रेजी लेखों का हिन्दी में सारांश भी प्रस्तुत किया है, एतदर्थ वह निश्चय ही बधाई के पात्र हैं। सहयोग के लिये डॉ० नवीन कुमार श्रीवास्तव एवं डॉ० राहुल कुमार सिंह को भी मैं धन्यवाद देता हूं। टंकण कार्य एवं सेटिंग के लिये श्री विमल चन्द्र मिश्र तथा सुन्दर एवं सत्वर मुद्रण हेतु श्री आनन्द कुमार जैन निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं। अंग्रेजी लेखों का संक्षिप्त हिन्दी रूप १. जैन लोक-विज्ञान का सार्वकालिक महत्त्व ओस्लो यूनिवर्सिटी के शोध छात्र श्री क्रुट आकलैंड को यह लेख लिखने की प्रेरणा दिगम्बर आर्यिका माता ज्ञानमती द्वारा स्थापित हस्तिनापुर के श्री दिगम्बर त्रिलोक शोध संस्थान में जैन लोक के स्वरूप की उत्कृष्ट झांकी को देखकर मिली। लेखक के मन में यह प्रश्न आना स्वाभाविक था कि जैन धर्म जिसके केन्द्रविन्दु में मोक्ष हैPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 172