Book Title: Sramana 2005 07 10
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 5
________________ सम्पादकीय 'श्रमण' जुलाई-दिसम्बर २००५ संयुक्तांक सम्माननीय पाठकों के समक्ष जैन धर्मदर्शन के बहुश्रुत विद्वान प्रोफेसर सागरमल जैन के चयनित लेख - विशेषांक के रूप में प्रस्तुत है। इस अंक में प्रो० जैन द्वारा जैन धर्मदर्शन के विविध आयामों यथा- जैन दर्शन, साहित्य, आचार, इतिहास, संस्कृति, कला आदि पर लिखे गये महत्त्वपूर्ण आलेखों को स्थान दिया गया है। प्रोफेसर सागरमल जैन : एक संक्षिप्त परिचय राम तुम्हारा वृत्त स्वयं में काव्य है, कोई कवि बन जाये सहज सम्भाव्य है । प्रो० सागरमल जैन का जीवन- कैनवास अनेक आड़ी-तिरछी रेखाओं का वितान है जिसपर दुःख और सुख, विफलता और सफलता दोनों ही तरह के रंग उभरते मिटते दिखाई देते हैं। आपका जीवन हमें प्रेरित करता है कि यदि मन में लगन हो, साध्य को पाने का दृढ़ संकल्प हो तो जीवन में आने वाली हर कठिनाइयां बौनी हो जाती हैं और सफलता उसके कदम चूमती है। तभी तो व्यावसायिक पृष्ठभूमि में अपने जीवन की सक्रिय शुरुआत करने वाले प्रो० जैन पारिवारिक व्यवसाय में रहते हुए भी अपने अध्ययन की अभीप्सा को प्रज्वलित किये रहे और उनकी इसी लगन ने उन्हें कालान्तर में जैन धर्म-दर्शन के एक आधिकारिक विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। सागरसम गहरे, शान्त एवं सौम्य व्यक्तित्व के धनी प्रोफेसर सागरमल जैन का जन्म वि०सं० १९८८ (तदनुसार २२ फरवरी १९३२) की पवित्र तिथि माघ पूर्णिमा को मध्य प्रदेश के मालव अञ्चल के शाजापुर नगर में हुआ था । आपने १९५५ में हाईस्कूल, १९५७ में इण्टरमीडिएट, १९६१ में बी०ए० तथा १९६३ में एम० ए० किया । १९६५ से ही आप मध्यप्रदेश शासकीय महाविद्यालय की सेवा में आ गये और १९६८ में आप हमीदिया कालेज भोपाल में दर्शन शास्त्र के विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्त हो गये। सेवारत रहते हुए ही आपने १९६९ में पीएच०डी० किया। बहुत अल्प समय में ही अपने परिश्रम, विश्लेषणात्मक प्रतिभा और मधुर स्वभाव के कारण आप मध्य प्रदेश के शिक्षा जगत् पर छा गये । इसी बीच आपका सम्पर्क जैन धर्म के मूर्धन्य विद्वान पं० दलसुख भाई मालवणिया से हुआ और उनकी प्रेरणा से आप १९७९ में पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान (अब पार्श्वनाथ विद्यापीठ) के निदेशक पद पर नियुक्त होकर वाराणसी आ गये। पार्श्वनाथ विद्याश्रम के निदेशक के रूप में आपकी प्रतिभा इतनी निखरी कि आपको अनेक सम्मानों से सम्मानित होने तथा अनेक संस्थानों के विद्वत् परिषद् और प्रबन्धसमितियों में पदेन जुड़ने का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। विदेशों में आपने अनेक बार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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