Book Title: Sramana 2005 07 10
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 4
________________ श्रमण जुलाई-दिसम्बर २००५ (संयुक्तांक) श्रमण पाठकों की नज़र में सम्पादकीय जैन विद्या के विविध आयामों पर प्रो० सागरमल जैन द्वारा लिखित लेख-संग्रह विशेषांक अनुक्रमणिका हिन्दी खण्ड १. भारतीय संस्कृति के दो प्रमुख घटकों का सहसम्बन्ध (वैदिक एवं श्रमण) १-१७ २. महावीर का श्रावक वर्ग तब और अब : एक आत्मविश्लेषण १८-२४ ३. भगवान महावीर का जन्म स्थल: एक पुनर्विचार २५-३६ ४. भगवान महावीर का केवलज्ञान स्थल: एक पुनर्विचार ३७-४० ५. भगवान महावीर की निर्वाणभूमि पावा - एक पुनर्विचार ४१-४७ ६. जैन तत्त्वमीमांसा की विकासयात्रा : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में ४८-५७ ७. जैन दर्शन में मोक्ष की अवधारणा ५८-६१ ८. जिनप्रतिमा का प्राचीन स्वरूप : एक समीक्षात्मक चिन्तन ६२-६८ ९. 'अंगविज्जा' में जैन मंत्रों का प्राचीनतम स्वरूप ६९-७५ १०. उमास्वाति एवं उनकी उच्चै गर शाखा का उत्पत्तिस्थल एवं विचरणक्षेत्र ७६-८१ ९१. उमास्वाति का काल ८२-८६ १२. उमास्वाति और उनकी परम्परा ८७-९२ १३. जैन आगम साहित्य में श्रावस्ती ९३-९६ १४. प्राकृत एवं अपभ्रंश जैन साहित्य में कृष्ण ९७-११० १५. मूलाचार : एक अध्ययन १११-१२३ १६. प्राचीन जैनागमों में चार्वाक दर्शन का प्रस्तुतीकरण एवं समीक्षा १२४-१३१ १७. ऋषिभाषित में प्रस्तुत चार्वाक दर्शन १३२-१३६ १८. राजप्रश्नीय सूत्र में चार्वाक मत का प्रस्तुतीकरण एवं समीक्षा १३७-१४१ १९. भागवत के रचना काल के सन्दर्भ में जैन साहित्य के कुछ प्रमाण १४२-१४५ २०. बौद्धधर्म में सामाजिक चेतना १४६-१५५ २१. धर्म निरपेक्षता और बौद्धधर्म १५६-१६३ २२. महायान सम्प्रदाय की समन्वयात्मक जीवनदृष्टि १६४-१७४ ENGLISH SECTION 23. Human Solidarity and Jainism : The Challenge of our times 176-185 24. The Impact of Nyāya and Vaišeșika School on Jaina Philosophy 186-192 विद्यापीठ के प्रांगण में १९३-१९५ जैन जगत् १९६-२१३ साहित्य सत्कार २१४-२१६ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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