Book Title: Soya Man Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ 14 सोया मन जग जाए हमारी स्थूल क्रिया है। यह सही है, अमनस्कता तक पहुंचना सहज-सरल नहीं है। मन को पकड़ते-पकड़ते वहां पहुंच जाएं। आलंबन से निरालंबन तक चले जाएं। हमारा ध्येय है-अमन तक पहुंचना, चित्त तक पहुंचना। यही ध्यान का ध्येय है। ध्यान का ध्येय मन तक पहुंचना नहीं है। यदि हम केवल मन तक रहेंगे तो सदा खेल खेलते रहेंगे, जैसे बच्चा खेल खेलता रहता है, उसी में उलझा रहता है। मैं जब-जब भारतीय दार्शनिकों की चर्चाओं को पढ़ता हूं तो मुझे लगता है कि उन्होंने भी बड़े-बड़े मानसिक खेल खेले हैं। जो ध्यान की स्थिति में नहीं जाता, भले फिर वह दार्शनिक हो या बड़ा पंडित, वह मानसिक खेल खेलेगा, मानसिक क्रीड़ा में रत रहेगा। वह उसे ही अन्तिम मान लेता है, इसलिए दु:ख बना का बना रहता है। ध्यान में भी यदि यह मानसिक खेल या क्रीड़ा चलती रही तो ध्यान मानसिक स्तर पर होगा। ऐसी स्थिति में ध्यानकाल में लगेगा कि आनन्द है, शान्ति है, पर जैसे ही ध्यान से उठे कि सब कुछ वैसा का वैसा है। कोई परिवर्तन घटित नहीं होगा। एक चरवाहा पंडितजी के पास आकर बोला—'महीना पूरा हो रहा है। मैंने आपकी गाएं चराई हैं। मुझे पैसे मिलने चाहिए।' पंडितजी बोले—'भोले आदमी हो। पैसा क्या मांगते हो? क्या तुम नहीं जानते कि वेदान्त में क्या लिखा है? वेदान्त कहता है सर्व ब्रह्ममयं जगत्। सारा ब्रह्ममय है। जब हम सब ब्रह्ममय हैं तो कौन किसको पैसा देगा।' चरवाहा बड़ा परेशान हुआ। __दूसरे एक व्यक्ति के पास जाकर चरवाहे ने कहा—'मैंने आपकी गाएं चराई हैं। महीना पूरा हो गया है। पैसा दें।' वह बोला-'अरे! क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि महात्मा बुद्ध ने क्या कहा? उन्होंने कहा-'सर्वं क्षणिकम्' सारा क्षणिक है। जो तुमने गाएं चराई, वे तो कब की ही मर चुकी हैं। पहले क्षण में ही मर गईं। अब जो गाएं हैं, वे तो उनकी संतान है। तुम भी मर चुके । मैं भी मर चुका। तुम भी नए पैदा हुए, मैं भी नया पैदा हुआ, गाएं भी नई पैदा हुईं। पुरानी गायों को चराने का कौन पैसा देने वाला है और कौन पैसा लेने वाला ___ चरवाहा दोनों मालिकों की बात सुनकर स्तब्ध रह गया। उसे कुछ सूझा नहीं। उसने अपनी राम कहानी एक समझदार आदमी को सुनाई। उसने सलाह देते हुए कहा—गाएं तुम्हारे पास हैं तो उन्हें मालिकों के घर मत भेजो, अपने ही घर में रख लो। आगे क्या कुछ कहना है, सारी बात उसे समझा दी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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