Book Title: Skandakacharya Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 4
________________ स्कंदका चरित्रं // 3 // श्रुत्वा भूमिपतिः पुत्रा-वरोधानीकसंयुतः // समागाद्वंदितुं क्रीडो-याने श्रीसुव्रतं जिनं // 18 // विधिनानम्य सर्वज्ञं / स्कंदकेन समं नृपः // जिनस्याकर्णयामास / देशनां शिवसौख्यदां // 19 // तां निशम्य समुत्पन्न -वैराग्यः स्कंदको द्रुतं // सस्पृहोऽभूद् व्रतादाने / तदानीं च विशेषतः // 20 // जिनं नत्वा ततो गत्वा / पित्रा सह निजं गृहं // व्रतं गृहीतुकामः स-नपृच्छत्पितरावयं // 20 // पितरावाहतुर्वत्सा-धुना त्वं वर्तसे युवा // गृहाण राज्यमस्माक-मुचितं सांप्रतं व्रतं // 21 // कामं भवभयोद्विग्नः / शिवार्थी स्कंदकः पुनः // पित्रोर्वाक्यं नानुमेने। चारित्रे स्थिरवासनः // 22 // पित्रोरनुमति प्राप्य / सुहृदां पंचभिः शतैः // सह जग्राह चारित्रं / श्रीसुव्रतजिनांतिके // 23 // विज्ञाता खिलसिद्धांतः।प्राप्याचार्यपदं जिनात् // कतिचिद्वत्सरान् साध। विजढे स्कंदकोऽर्हता // 24 // प्राकर्मणान्यदा नुन्नः। स्कंदको भगिनीपति // दंडकानिं वंदयितुं / कुंभकारकटे पुरे // 25 // गंतुमुत्कंठितोऽनुज्ञा-मयाचत जगत्प्रभुं॥अभ्यधात्तमिदं खामी।त्रिकालज्ञानवांस्ततः॥२६॥युग्मं // प्राणांतकृत्परं तत्रो-पसर्गोऽस्ति तव ध्रुवं // ततः संत्यज्यतां सौम्य / स्थानं क्लेशकरं किल // 27 // PP.AC Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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