Book Title: Skandakacharya Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 177306610 09999999999999999999 .. 7 लजी जैन ज्ञान Jening Jin Shasan "052378 gyanmandir@kobatirth.org मोहनलाल // श्रीजिनाय नमः॥ // श्रीचारित्रविजयगुरुभ्योनमः / / इन्दौर सिटी ) // श्रीस्कंदकाचार्यचरित्रम् // (कर्ता-श्रीशुभवर्धनगणी) छपावी प्रसिद्ध करनार पंडित हीरालाल हंसराज. (जामनगरवाळा) पीपला बाजार पन्न TYTT -60 सने 1929. मूल्य रु.०-८-० Printod at Jain Khaskaroday Printing Press- JAMNAGAR. 0288888888888888888 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्कंदका चरित्रं KR // 1 // // श्रीजिनायनमः॥ // अथ श्रीस्कंदकाचार्यचरित्रं प्रारभ्यते // (कर्ता-श्री शुभवर्धनगणी) छपावी प्रसिद्ध करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज ( जामनगरवाळा) श्रावस्तीति सुविस्तीर्ण-सुकृतात्रास्ति पूर्वरा // जना वितमसो यत्र / प्रासादाश्च मणिमयाः॥१॥ सुविख्यातयशास्तत्र / जितशत्रुर्नरेश्वरः // तस्य भूमिपतेः शील-धारिणी धारिणी प्रिया // 2 // तयोर्दक्षः स्कंदकाख्यः / कुमारः सारविक्रमः // युवराजश्रियं भुंजन् / जैनधर्मरतोऽभवत्. // 3 // + स्वसा कनीयसी तस्य / पुरंदरयशोऽभिधा // चतुःषष्टिकलोपेता / रूपसौभाग्यशालिनी // 4 // दंडकाग्निनरेंद्रस्य / कुंभकारकटप्रभोः // सा दत्ता पट्टराज्ञीत्वं / प्राप्ता सौभाग्यभाग्यभूः // 5 // दंडकाग्निमहीभर्तु-मिथ्यादृष्टिः पुरोहितः // पालकाख्यो जैनधर्म-द्वेषी विद्याभिमानभूत् // 6 PP.Ac, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MP केनचिद्राज्यकार्येण / प्रेषितो भूभुजान्यदा // राजपर्षदि संप्राप्तः / श्रावस्तीनगरी गतः // 7 // राज्ञोऽन्येयुः सभायां स / पुरोधाः समलाशयः // निनिंद जिनधर्म श्री-कुमारे तत्र शृण्वति // 8 // कुतीर्थिकजनप्रोक्त-हेतुपोतप्रभंजनैः // युक्तैर्वचोभिरेतस्य / स्कंदकः पक्षमच्छिदत् // 9 // अंतःकोपाकुलो दातुं / प्रत्युत्तरमथाऽप्रभुः // बहिः स्मितमुखोऽशंसत् / वचः स्कंदकभाषितं // 10 // कार्यं कृत्वात्र भूपस्य / गते स्थानं पुरोधसि // दध्याविति कुमारेंद्र-स्तत्त्ववित्स्कंदकाभिधः॥ 11 // हार्यते हा प्रमादेन / मानुषं जन्म दुर्लभं // मुधा मयेष्टफलकृत् / दक्षिणावर्तशंखवत् // प्रागल्पसुखदाः. पश्चा-दसंख्यदुःखदायिनः // किंपाकफलवद्भोगा / बुधैर्नित्यममी मताः // 13 // असारं खलु संसारं / तत्परित्यज्य सत्वरं // गृह्णाम्यनंतसुखदं / व्रतं श्रीसुव्रतांतिके // 14 // पुण्यान् मनोरथानेवं / कुमारेऽस्मिन् प्रकुर्वति॥ विहरंस्तां पुरीं प्राप। प्रातः श्रीसुव्रतो जिनः // 15 // क्रीडोद्याने विरचयां-चक्रे संमदमेदुरैः // देवैः समवसरणं / स्वामिनो मुक्तिगामिनः // 16 // अवीवृधन्नृपं गत्वा / सत्वरं वनपालकः // श्रीसुव्रतजिनाधीश-स्यागमेनातिभक्तिमान् // 17 // P.P.AC Gunratnesuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्कंदका चरित्रं // 3 // श्रुत्वा भूमिपतिः पुत्रा-वरोधानीकसंयुतः // समागाद्वंदितुं क्रीडो-याने श्रीसुव्रतं जिनं // 18 // विधिनानम्य सर्वज्ञं / स्कंदकेन समं नृपः // जिनस्याकर्णयामास / देशनां शिवसौख्यदां // 19 // तां निशम्य समुत्पन्न -वैराग्यः स्कंदको द्रुतं // सस्पृहोऽभूद् व्रतादाने / तदानीं च विशेषतः // 20 // जिनं नत्वा ततो गत्वा / पित्रा सह निजं गृहं // व्रतं गृहीतुकामः स-नपृच्छत्पितरावयं // 20 // पितरावाहतुर्वत्सा-धुना त्वं वर्तसे युवा // गृहाण राज्यमस्माक-मुचितं सांप्रतं व्रतं // 21 // कामं भवभयोद्विग्नः / शिवार्थी स्कंदकः पुनः // पित्रोर्वाक्यं नानुमेने। चारित्रे स्थिरवासनः // 22 // पित्रोरनुमति प्राप्य / सुहृदां पंचभिः शतैः // सह जग्राह चारित्रं / श्रीसुव्रतजिनांतिके // 23 // विज्ञाता खिलसिद्धांतः।प्राप्याचार्यपदं जिनात् // कतिचिद्वत्सरान् साध। विजढे स्कंदकोऽर्हता // 24 // प्राकर्मणान्यदा नुन्नः। स्कंदको भगिनीपति // दंडकानिं वंदयितुं / कुंभकारकटे पुरे // 25 // गंतुमुत्कंठितोऽनुज्ञा-मयाचत जगत्प्रभुं॥अभ्यधात्तमिदं खामी।त्रिकालज्ञानवांस्ततः॥२६॥युग्मं // प्राणांतकृत्परं तत्रो-पसर्गोऽस्ति तव ध्रुवं // ततः संत्यज्यतां सौम्य / स्थानं क्लेशकरं किल // 27 // PP.AC Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का चरित्रं प्राहासावेवमुक्तोऽपि / वयमाराधका न वा // प्राणांते चोपसर्गेऽपि / प्रभो तस्मिन्नुपागते // 28 // खामी प्राह विमुच्य त्वां / सर्वेऽप्याराधकाः परे / उक्तोऽप्येवं स नामुंच-द्भावित्वेन कदाग्रहं // 29 // यदि चाराधका एते / तदभूत्तच्छुभं फलं // ममेत्युक्त्वा प्रणम्येशं / सूरिः साधुयुतोऽचलत्. // 30 // कुंभकारकटोपांत-स्थितग्रामे स आगतः // तदागमनवार्तागात् / पुरे तत्र तदाखिले // 31 // 2 तदासौ पालको दथ्यौ / श्रुतश्रीस्कंदकागमः॥तिरस्कारं दधत् प्राच्य-मरिमुक्तेषुवद् हृदि // 32 // विगोपितस्तदानेन / स्वस्थानबलमाप्य यत् // विस्मृतं मेन तत्तस्य / सांप्रतं दर्शये फलं // 33 // 2 कालेनाकार्षित इव / प्रायोऽस्त्यत्र समागतः॥तभव्यमभवत् किंचित् / करिष्ये मम वांछितं // 34 // विचिंत्येति स दुष्टात्मा / वने तत्सूरिभूषिते // अगोपयदनेकानि / शस्त्राणि निजपूरुषैः // 35 // श्रीस्कंदकागमनं प्रातः, श्रुत्वा तन्नगरीजनः // तत्रैवोद्यानदेशेऽगा-द्वंदितुं भूरिभक्तितः // 36 // उद्यानपालतो मत्वा, स्वेष्टं सूरिसमागमं // राजा राज्ञीयुतः प्राप, गुरुवंदनहेतवे // 37 // व्याजहार तथा धर्म, जिनोक्तं तत्र सूरिराट् // कोमलैर्वचनैः सवों, जनस्तुष्टिमगाद्यथा // 38 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टक चरित्रं ततोव्याख्यां निशम्योर्वी-पतिः प्राप्तः स्वमंदिरं // श्रीस्कंदकगुरून् हृष्टः। प्रशशंस पुनः पुनः॥ 39 // स लब्धावसरः क्षमापं / निश्येकांते पुरोहितः // दुरात्मेदमभाषिष्ट, पात्रं दुष्टधियामहो // 40 // इमे कुसाधवःमाप, किं वर्ण्यते पुनः पुनः॥स्वाम्येषां दोष्टवं हाद, न जानात्यतिदौःस्थ्यतः॥ 41 // भवद्राज्यजिघृक्षाये, शृणु भूपैष सूरिराट् // अप्रभुश्चरितुं घोरं / व्रतकष्टमिहागमत् // 42 // की सहस्रयोधिनोऽस्यैते, शिष्या ह्येष महाभटः // षत्रिंशदायुधधरा, निश्येकांतेऽखिला अपि // 43 // क यदा तदावकाशं ते, विश्वस्तस्य गुणैरयं // गृहीष्यति निहत्य त्वां, साम्राज्यमिति निर्णयः // 44 // राजा पुरोहितं प्राह, दृश्यते ह्येषु केवलः // धर्मस्याडंबरः प्रोढः, किंतु नास्त्रपरिग्रहः // 45 // की जगौ पुरोहितः स्वामिन् , यद्वचः प्रत्ययो न मे // निजांस्तत्र जनान् प्रेष्य, परीक्षां कुरु सत्वरं // 46 // d नरेंद्रश्चकितश्चित्ते, किंचित्तद्वारप्रतीतये // शिक्षां दत्वा रहः कांश्चि-नरानप्रेषयद् द्रुतं // 17 // तेषु साधुषु कुर्वत्सु, निद्रां कृत्वा च पौरुषीं // शस्त्रावलोकनं चकु-स्ते नरास्तत्र सर्वतः॥४८॥ कर्षितानि भुवस्तानि, शस्त्राण्यादाय सत्वरं / भूपस्याग्रेऽमुंचनेते, संयुक्ताश्च पुरोधसा // 49 // PP.ALGunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्कदका // 6 // चरित्रं // 6 // EVENSEREGREVELARE प्रत्ययं प्राप्य तद्वाक्ये, शस्त्राण्यालोक्य भूपतिः॥ अतितीव्रतरक्रोधा-रुणास्यस्तत्क्षणादभूत्. // 50 // 2 हुं हुं मां मारयिष्यति, क्रूराः पाखंडिनो ह्यमी // मम राज्यं गृहोष्यंति, एषां वार्ता महत्यहो // 51 // दवाग्निवज्ज्वलन्नेवं, दंडकाग्निरिति ब्रुवन् // पुरोधसं दुरात्मानं, निर्विचारो दिशेदिति // 52 // मुनयोऽमी दुरात्मान-स्तुभ्यं दत्ता मयाधुना॥ स्वेच्छया निग्रहं दुष्टा-त्मनां कुरु ततो द्रुतं // 53 // ततो हृष्टमना हार्द-स्फोटकान् स्फेटयाम्यहं / / प्राक्तनानिति सध्यायन्, पुरोधाः सुभटैर्वृतः // 54 // परमाधार्मिकसमः, पुरोधावन्निरागसः॥मुनीस्तास्त्रिजगत्पूज्यान , वधस्थानमथानयत् . // 55 // युग्मं त्रासयन् विपरीतात्मा, त्रिजगत्सुहृदो मुनीन्य था यथा व्यथयति, मोदंते ते तथा तथा // 56 // / स्कंदकाचार्यमाहेति, पालको ब्राह्मणाधमः // यत्त्वया मे तदाकारि, पक्षोच्छेदः स्वपर्षदि // 57 // पक्षोच्छेदमनूचानः, करिष्येऽयतवाप्यहं // क्षमामेवाभजत् सूरिः, कठोरमिति भाषिते // 58 // क्रमा पापात्मनांधुर्यः, पालकस्तान मुनीश्वरान्॥तिलयंत्रेऽक्षिपद् घोरे,धिर धिर निर्दयतामरे॥ 59 // नान्यथास्याजिनेंद्रस्य, वाक्यमेवं विचिंतयन् अशिक्षयन्निजान् शिष्या, स्कंदकार्यःक्षमामिति // 6 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं // 7 // | सत्क्षत्रवंशजा यूयं, हंहो धीरास्तपोधनाः // कुरुष्वमय यूयं तु, युद्धं भावारिभिः सह // 61 // तत्क्षमध्वं कृतां घोर-वेदनाममुना भृशं // संख्यातोता यतः सोढा, वेदना नारके भवे // 62 // मुहूर्तमात्रजैः कष्टै-रय॑तामय॑तामहो // अनंतसुखसंपत्ति-मयो मुक्तिरनुत्तरा // 63 // गुरोः सम्यगिमा शिक्षा, श्रुत्वाधिकमनोबलाः॥सोढुं तां वेदनां यंत्र-पोडोत्यां मुनयोऽभवन्. // 64 // आरूढाः क्षपकश्रेणिं, निःश्रेणिं मुक्तिवेश्मनः॥ते सऽप्यभवन्नंत-कृतकेवलिनस्तदा // 65 // एवमेषु मुनींद्रेषु, सिद्धि प्राप्तेषु भावतः // एकः क्षुल्लस्तथा सूरिः, संप्राप्ताववशेषतां // 66 / / यंत्रे क्षुल्लमपि क्षेप्तुं, ततो लाति पुरोहिते // सूरिरूचे क्षुल्लमोहा-क्रांतस्तं च पुरोहितं // 67 // कि ग्रहाण क्षुल्लमेनं त्वं, पश्चात्प्राग्मां निपीड्य च // प्रभवामीक्षितुं दृष्टया, नाहमस्य हि वेदनां // 68 // बालोऽयं घात्यमानोऽस्य, पुरो दुःखकरो भवेत् // कामं पुरोधास्तं पूर्व, यंत्रे क्षुल्लमपीडयत् // 69 // क्षमायुक्तः स धैर्येण, क्षिप्तकर्मा लघुर्मुनिः // केवलज्ञानमासाद्य, निर्वाणं प्राप तत्क्षणात् // 70 // सिद्धार्थाः पीडिता लोके, खलरूपा भवंत्यहो॥पीडितास्ते तु सिद्धार्था-श्चित्रं जजुर्महोत्तमाः // 71 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust asun Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्कदका चरित्रं // 8 // 2 बालमप्यमुचद्यो न, दुरात्मायं स कीदृशः // इति कोपात्परीणामः, सूरेस्तस्याऽशुभोऽजनि // 72 // पीड्यमानस्ततश्चक्रे, निदानं बहुकोपतः // सदेशभूपपूलोंक पालकज्वालनाय सः // 73 // दुःकर्मण्यत्र संजाय-माने प्रातरभूद् भृशं // सूर्येणाऽप्रभुणैवैतद्, दृष्टुमभ्रावृतिर्दधे // 74 // सर्वा अपि दिशो जाता, रजोभिः कलुषा भृशं ॥बभ्रमुः पिशिताहाराः, खेच सर्वे विहंगमाः // 75 // गुरोर्धर्मध्वजं तेषा-मेका शकुनिका भुवि // पतितं नृकरभ्रांत्या, ललो रक्ताक्तमादरात् // 76 // समुत्पतंती सा भूप-प्रेयसीमंदिरोपरि // आगाद्यावन्मुखात्ताव-द गुरोधर्मध्वजोऽपतत् // 77 // तस्याः पुरत एव प्रा-गुद्विग्नमनसः स तु // वज्रवन्न्यपतत् पाणौ, तया स द्रुतमाददे // 78 // सा प्राहायं कुतो धर्म-ध्वजो बंधोः समागतः // मद्दत्तेनैव सद्रत्न-कंबलेनास्ति वेष्टितः // 79 // al लोहितेनैष लिप्तः किं, दिवोऽत्र पतितः कथं // मार्गयतेस्म सा शुद्धिं, ततः सूरेः समंततः // 8 // तस्याश्रौषीदियं प्रेष्य-मुखातूर्णमुपद्रवं // कुट्टयंती निजं वक्षो, मूछौं सागाच्च दुःखतः // 81 // 2 मूर्छाया विगमे, भूमी-तले विलुठतिस्म सा // रुदंती निःश्वसंती च, सगद्गदमवग् नृपं // 82 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं LEEVE // 9 // 2 कथमाचीर्णमाः पाप, घोरं कमेंदशं त्वया // यदताः साधः शुद्धा, मारणाय पुरोधसः // 83 // 2 भूपेनोक्ते रात्रिवृत्ते, जगौ राज्ञी ततो हहा // जिनेंद्रधर्मद्विष्टेन, नरेंद्र च्छलितो भवान् // 84 // जानीहि कपटं सर्व-मिदमेतेन निर्मितं // सुसाधुषु स्वभावेन, मात्सर्य बिभ्रता सदा // 85 // पित्रा प्रदीयमानं स्वं, राज्यं त्यक्त्वा जवेन यः॥जग्राह दीक्षां त्वद्राज्यं, स कथं भूप लास्यति // 86 // धिर धिग् ते शून्यचितवं, धिर धिग् दुर्बलकर्गतां॥ हा कूरादेशदानेन, मुनयो मारितास्त्वया // 87 // किं नाम गृहीतं तस्य, पापिष्टस्य पुरोधसः // अग्निहोत्रे त्वदने यो, दहतिस्म दयागुणान् // 88 // यद्भाव्यं कार्य तज्जातं; बहु किं कथ्यते नृप॥जानीहि ते सराष्ट्रस्या-गादासन्नः क्षयः खलु // 8 // बंधोः श्रीस्कंदकस्याद्य, वधं साधोर्निशम्य यत् // पुरंदरयशा धिर धिग्, जीवेत्तिष्टेच्च धामनि // 90 // शोचंतीमिति तां राज्ञी-मुक्षिप्याहन्मतामरी॥श्रीसुव्रतजिनेंद्रस्य, पार्श्वे क्षिप्रं मुमोच च // 91 // विरक्तचित्ता सा राज्ञी, प्राबाजीदर्हतोंतिके // निवेदस्तु सतां हि स्यात्, केवलं भवमुक्तये // 92 // स्कंदकस्तन्निदानेनो-त्पन्नोऽग्निकुमरे पुनः // सर्वपर्याप्तिसंपूर्णः, स मुहूर्तातरेऽभवत् // 93 // GRAFARGESSE Jun Gun Aaradi s P.P.AC.Gunratnasuri M.S. t Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदका पल्यंकादुत्थितो दिव्या-दवधिज्ञानतो निजं // दृष्ट्वा पूर्वभवं तीव-क्रोधाक्रांतोऽभवत्सुरः // 94 // चरित्रं कल्पांताग्निरिवात्यंतं, ज्वलन् कोपाग्निनाधिकं // क्षिप्रमागत्य खंगार-वृष्टिं चक्रे सुरोऽब्दवत् // 95 // // 10 // भस्मीबभूव भृजानिः, सदेशस्तेन वह्मिना // यतोऽधमकुसंसर्गा-न्महतामप्यहो क्षयः // 96 // // 10 // वराकः पालकः सोऽगा-ज्ज्वलित्वा नारकक्षितो॥स्युः पापवृत्तयो जीवाः, स्वस्यान्येषां विपत्तये॥ 97 // 12 एवं यथा क्षांतिधरर्बभूवे, विपद्यहो स्कंदकसूरिशिष्यैः // अन्यैस्तथा साधुवरैस्तु भाव्यं, स्पृहाल्लुभिः / 2 मोक्षसुखानि सम्यग् // 98 // // इति श्रीस्कंदकाचार्यचरित्रं समाप्तं // श्रीरस्तु // .. // आ ग्रंथ श्रीशुभवर्धनगणिजीए रचेली ऋषिमंडलनी टीकामांथी ओधरीने बनता प्रयासे शुद्ध करीने स्वपरना श्रेयमाटे पोताना श्रीजैनभास्करोदय प्रेसमां छाप्यो. // समाप्तोऽयं ग्रंथः गुरुश्रीमच्चारित्रविजयसुप्रसादात् // AAAAVAAGAAgave PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PETERSISTEISISTEISTDeemperseas Poemseeseareeremem OR ॥इति श्रीस्कंदकाचायचरित्रं समाप्तम् // DeceIEEEEEEEEEEEta laletenemeSIEREIGNENCIENSIENSTEISeed इन्दौर सिटी मोहनलालजी जैन parentine PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Frust