________________ टक चरित्रं ततोव्याख्यां निशम्योर्वी-पतिः प्राप्तः स्वमंदिरं // श्रीस्कंदकगुरून् हृष्टः। प्रशशंस पुनः पुनः॥ 39 // स लब्धावसरः क्षमापं / निश्येकांते पुरोहितः // दुरात्मेदमभाषिष्ट, पात्रं दुष्टधियामहो // 40 // इमे कुसाधवःमाप, किं वर्ण्यते पुनः पुनः॥स्वाम्येषां दोष्टवं हाद, न जानात्यतिदौःस्थ्यतः॥ 41 // भवद्राज्यजिघृक्षाये, शृणु भूपैष सूरिराट् // अप्रभुश्चरितुं घोरं / व्रतकष्टमिहागमत् // 42 // की सहस्रयोधिनोऽस्यैते, शिष्या ह्येष महाभटः // षत्रिंशदायुधधरा, निश्येकांतेऽखिला अपि // 43 // क यदा तदावकाशं ते, विश्वस्तस्य गुणैरयं // गृहीष्यति निहत्य त्वां, साम्राज्यमिति निर्णयः // 44 // राजा पुरोहितं प्राह, दृश्यते ह्येषु केवलः // धर्मस्याडंबरः प्रोढः, किंतु नास्त्रपरिग्रहः // 45 // की जगौ पुरोहितः स्वामिन् , यद्वचः प्रत्ययो न मे // निजांस्तत्र जनान् प्रेष्य, परीक्षां कुरु सत्वरं // 46 // d नरेंद्रश्चकितश्चित्ते, किंचित्तद्वारप्रतीतये // शिक्षां दत्वा रहः कांश्चि-नरानप्रेषयद् द्रुतं // 17 // तेषु साधुषु कुर्वत्सु, निद्रां कृत्वा च पौरुषीं // शस्त्रावलोकनं चकु-स्ते नरास्तत्र सर्वतः॥४८॥ कर्षितानि भुवस्तानि, शस्त्राण्यादाय सत्वरं / भूपस्याग्रेऽमुंचनेते, संयुक्ताश्च पुरोधसा // 49 // PP.ALGunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust