Book Title: Skandakacharya Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 7
________________ स्कदका // 6 // चरित्रं // 6 // EVENSEREGREVELARE प्रत्ययं प्राप्य तद्वाक्ये, शस्त्राण्यालोक्य भूपतिः॥ अतितीव्रतरक्रोधा-रुणास्यस्तत्क्षणादभूत्. // 50 // 2 हुं हुं मां मारयिष्यति, क्रूराः पाखंडिनो ह्यमी // मम राज्यं गृहोष्यंति, एषां वार्ता महत्यहो // 51 // दवाग्निवज्ज्वलन्नेवं, दंडकाग्निरिति ब्रुवन् // पुरोधसं दुरात्मानं, निर्विचारो दिशेदिति // 52 // मुनयोऽमी दुरात्मान-स्तुभ्यं दत्ता मयाधुना॥ स्वेच्छया निग्रहं दुष्टा-त्मनां कुरु ततो द्रुतं // 53 // ततो हृष्टमना हार्द-स्फोटकान् स्फेटयाम्यहं / / प्राक्तनानिति सध्यायन्, पुरोधाः सुभटैर्वृतः // 54 // परमाधार्मिकसमः, पुरोधावन्निरागसः॥मुनीस्तास्त्रिजगत्पूज्यान , वधस्थानमथानयत् . // 55 // युग्मं त्रासयन् विपरीतात्मा, त्रिजगत्सुहृदो मुनीन्य था यथा व्यथयति, मोदंते ते तथा तथा // 56 // / स्कंदकाचार्यमाहेति, पालको ब्राह्मणाधमः // यत्त्वया मे तदाकारि, पक्षोच्छेदः स्वपर्षदि // 57 // पक्षोच्छेदमनूचानः, करिष्येऽयतवाप्यहं // क्षमामेवाभजत् सूरिः, कठोरमिति भाषिते // 58 // क्रमा पापात्मनांधुर्यः, पालकस्तान मुनीश्वरान्॥तिलयंत्रेऽक्षिपद् घोरे,धिर धिर निर्दयतामरे॥ 59 // नान्यथास्याजिनेंद्रस्य, वाक्यमेवं विचिंतयन् अशिक्षयन्निजान् शिष्या, स्कंदकार्यःक्षमामिति // 6 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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