Book Title: Skandakacharya Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ संदका पल्यंकादुत्थितो दिव्या-दवधिज्ञानतो निजं // दृष्ट्वा पूर्वभवं तीव-क्रोधाक्रांतोऽभवत्सुरः // 94 // चरित्रं कल्पांताग्निरिवात्यंतं, ज्वलन् कोपाग्निनाधिकं // क्षिप्रमागत्य खंगार-वृष्टिं चक्रे सुरोऽब्दवत् // 95 // // 10 // भस्मीबभूव भृजानिः, सदेशस्तेन वह्मिना // यतोऽधमकुसंसर्गा-न्महतामप्यहो क्षयः // 96 // // 10 // वराकः पालकः सोऽगा-ज्ज्वलित्वा नारकक्षितो॥स्युः पापवृत्तयो जीवाः, स्वस्यान्येषां विपत्तये॥ 97 // 12 एवं यथा क्षांतिधरर्बभूवे, विपद्यहो स्कंदकसूरिशिष्यैः // अन्यैस्तथा साधुवरैस्तु भाव्यं, स्पृहाल्लुभिः / 2 मोक्षसुखानि सम्यग् // 98 // // इति श्रीस्कंदकाचार्यचरित्रं समाप्तं // श्रीरस्तु // .. // आ ग्रंथ श्रीशुभवर्धनगणिजीए रचेली ऋषिमंडलनी टीकामांथी ओधरीने बनता प्रयासे शुद्ध करीने स्वपरना श्रेयमाटे पोताना श्रीजैनभास्करोदय प्रेसमां छाप्यो. // समाप्तोऽयं ग्रंथः गुरुश्रीमच्चारित्रविजयसुप्रसादात् // AAAAVAAGAAgave PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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