Book Title: Sirisiriwal Kaha Part 02
Author(s): Ratnashekharsuri, Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan
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________________ * पुदिव सहाइ पत्तो एगो नेमित्तिओ मए पुट्ठो। को मयणमंजरीए मह पुत्तीए वरो होही? // 646 // तेणुतं जो वइसाहसुद्धदसमीइ जलहितीरवणे / अचलंतछायतरुतलठिओ हवइ सो इमीइ घरो॥ 647 // अजं चिय तंसि तहेव पाविओ वच्छ ! पुण्णजोएणं। ता मयणमंजरिमिमं मह धूयं ज्ञत्ति परिणेसु // 648 // * * कीदृशमित्याह-पूर्व मम सभायां प्राप्तः एको नैमित्तिको मया पृष्टः मम पुज्या मदनमत्राः को वरो IF भर्ता भविष्यति ? // 646 // एवं मया पृष्टे सति तेन नैमित्तिकेनोक्तं-यो वैशाखसुदिदशम्यां जलधेः-समुद्र स्य तीरे यद्वनं तस्मिन् अचलच्छायस्य तरोस्तले स्थितो भवति स पुमान् अस्या वरो भावी // 647 // अद्यैव हे वत्स ! पुण्ययोगेन तथैव-नैमित्तिकोक्त पकारेणैव त्वं प्राप्तोऽसि, तस्मात् कारणात् इमा मदनमअरीं मम पुत्रीं। 8 झटिति-शीघ्र परिणयस्व // 648 // एवं भणित्वा-उक्त्वा नरेश्वरेण-राज्ञाऽतिविस्तारेण विवाह-पाणिग्रहणं ६४६-६४७-६४८-स्पष्टानि /

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