Book Title: Sirisiriwal Kaha Part 02
Author(s): Ratnashekharsuri, Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan
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________________ . हा पाणनाह गुणगणसणाह हा तिजयसारउवयार / हा चंदवयण हा कमलनयण हा रूवजियमयण // 658 // हाहा हीणाण अणाहयाण दीणाण सरणरहियाणं / सामिय ! तए विमुक्काण सरणमम्हाण को होही ? // 659 // एव विमुक्कपुक्काओ'ति विमुक्तपूत्कारे सत्यौ रुदितो-रोदनं कुरुतः॥ 657 // कथं रुदित इत्याद-हा इतिखेदे हे प्राणनाथ हे गुणगणैःसनाथ-सहित हा त्रिजगत्सारोपकार ! हा चन्द्रवदन-चंद्रवद्वदन-मुख यस्य तत्सबुद्धौ हे चन्द्रवदन हा कमलनयन-कमलवन्नयने-नेत्रे यस्य तत्सम्बुद्धौ हे कमलनयन हा रूपजितमदन-रूपेण जितो मदनः कामो येन तत्सम्बुद्धौ हे रूपजितमदन! // 658 // हाहा इतिखेदे हे स्वामिन् ! त्वया विमुक्तयोः-त्यक्तयोरत एव शरणरहितयोरावयोः कः शरणं भविष्यतीति ?, कीदृशयोरावयोः १-हीनयोः पुनरनाथयोः तथा दीनयोः इत्थं तयो रोदनं श्रुत्वा / / 659 / / / ६५८-अत्र चन्द्रवदन-कमलनयन-रूपजितमदनेति सम्बोधनत्रितयेन शोकातिशयव्यञ्जनात् करुणरसपरिपुष्टिः / ६५९-अत्र छेकानुप्रास वृस्यनुप्रासौ /

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