Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 10
________________ आदि तीर्थंकर श्री ऋषभ देव के द्वारा अपनी दोनों पुत्रियों को दिया वस्तुओं को दोनों का बटवारा करके देते समय एक को एक दिया और दुसरो हमा ज्ञान, कनाड़ी भाषा में हो या भोर यह भी कहा जाता है कि उनके मोक्ष पुत्री को दूसरा दिया ऐसा उनके मन में भाव न हो और उनको पता भी न पड़े जाने के पूर्व उन्होंने बड़ी रानी यशस्वती के पुत्र भरत को साम्राज्य पद और इस तरह एक ही वस्तु में दोनों को भिन्न भिन्न रूप में बतलाकर उन दो! लघु रानो सुनन्दा के पुत्र गोमंद देवको पोदनपुरका राज्य प्रदान किया। को भी संतुष्ट कर दिया। पश्चात् उनकी पुत्री ब्राह्मी और सुन्दरी देवो ने मिलकर पिता से इस पद्धति के अनुसार तमस्त शब्द समूह को प्रत्येक ध्वनि और प्रतिनिवेदन किया कि हे तात ! ऐसी कोई शाश्वत वस्तु हमें भी प्रदान कीजिये । 1 ध्वनि रूप अक्षर संज्ञा को परिवर्तन करके इस अंक अक्षर को चक्रबंध प में इस तरह प्रार्थना करने पर पिता ने कहा कि ठीक है, परन्तु सभी लौकिक पहले ही गोम्मट देव के द्वारा अर्थात् बाहुबली के द्वारा "समस्त शब्दागम शास्त्र वस्तुएं पहले ही वे अपने पुत्रों को दे चुके थे। रूपमें रचना किया गया है। उस दिनसे परम्परा रूपसे ही वह श्रीकुमदेन्दुप्राचार्य मगवान् वृषभदेव ने मन में सोचा कि इनको कोई लौकिक वस्तु देने । तक चला पाया है इस तरह इसमें उल्लेख किया गया है। उस समय प्रादि से क्या फायदा, कोई ऐसी चीज देना चाहिए कि जो परलोकमें भी इनको कीति ! तीर्थकर के द्वारा दिया हुआ अंक लिपिके अक्षर लिपि अलावा और भी उस समय को कायम रखे। इस तरह सोचकर भगवान् वृषभदेवने अपनी दोनों पुत्रियों को वृषभदेव सर्वज्ञ पद (केवल ज्ञान प्राप्त करने के बाद कहा हा दिव्य उपदेश बुलाकर संपूर्ण ज्ञान साधन के आधारभूत वस्तु इन्हें देना चाहिए, ऐसा सोचकर। भी करणटिक भाषामें ही कहा था श्री कुमुदेन्दु भाचार्य कहते हैं । कि इस गणित बुलाया और ब्राह्मो देवी को अपने जंघा पर बिठा कर उनके बायीं हथेली में १ भाषा में विश्व को ७१८ भाषायों को अपने अन्दर खींचकर समावेश करने वाले अपने दाया हाथ के अंगुष्ट से संपूर्ण भाषाओं को पूर्ण करने के लिए जितना । अंक भाषा शास्त्र में उपलब्ध है ऐसा बतलाया है। मंक चाहिए उतने हो अंक को असे लेकर अ, इ, उ, ऋ, लू, ए, ऐ, यो, प्री इश्व भूवलय दोळनुरु हदिगेन्दु । सरस भाषेगवतार ।४-१७७. .. इन नो भक्षर को हस्व, दोघं प्मुत के सत्ताईस स्वरों तथा पुनः क, च, ट, त, प, इस वर्गके पच्चीस वगित के अक्षरों को य, र, ल, व, श, प, स, ह, इन पाठ वरद वादळनूरहदिनेन्टु भाषेय । सरमाले यागलु विद्या॥१०-२१० व्यजनों को तथा मागे, ०,००, ०००, ००००ये चार प्रयोग वाहनों को मिला- साविर देंटु भाषळिरलिबनेल्ला पावन यह वीर बारगी। कर ६४ चोसट अक्षर रूप, वर्णमालानों की रचना कर उनके हाथ में लिखा काव धर्मान्कबु ओंबत्तागियर्याग । तायु एनरकं भाष।५०-१२६। और उनको कहा कि ये अक्षर आपके नाम से यह अक्षय होकर रहें, और यह इबरोळु हुदगिद हदनेन्दु भाषेय । पइगळ गुणिसुन बरुवर् । सम्पूर्ण भाषानों को इतने ही पर्याप्त हैं ऐसा कहकर उनको आशीर्वाद दिया । बासवरेल्लाडुव दिव्य भाषेय । राशिय गरिएतदे कदि ।। दूसरी अपनी सुन्दरी नामक छोटी पुत्री को दायीं जंघा पर बिठाकर ! आशाधर्मामृत कुम्भदोळडगिह । श्री शनेननरंक भाषे।५-१२३। उनकी बाया हथेली में अपने दायें हाथ की अंगुष्ट से एक विदो इस तरह मिक्किह एळ नूरु कक्षर भाषेयम् । दक्किय द्रव्यागमर । लिखकर उसी के समानरूप से दो छेद करके उसे ही प्राधा आधा छेदकर १,२,1 ३, ४, ५, ६, ७, ८, ६, लिख दिया । पुनः इसको एक में मिला देने से पहले। तषक ज्ञानव मुदरियुष प्राशेय । चोक्क कन्नडद भूवलय ।५-१७५ के समान विदो रूप होता है और इन छेद को एक मेंको मिलाकर इस ग्रंक को। प्रकटित सर्व भाषांक (६-१४) धनवोदतर हबिनेट । हो वर्ग पद्धति के अनुसार मिलाते जाने से विश्व के समस्त मणु परमाणु ग्रहण वर्तमान भाषायें (६-४५-४६) सात सौ अठारह है। -१७४) उनमें करने के लिए जितने अंक आवश्यक हों उतने ये अंक पर्याप्त है । ऐसा भगवान सात सौ क्षुल्लक भाषायें और अठारह भाषायें कुल मिलाकर सात सौ अठारह मे इस पंक विद्याको, पुत्री सुन्दरो देवी को समझा दिया । और तदनुसार प्रत्येक 1(६.१६१) होती हैं।

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