Book Title: Simandharjin Chandraula Stavan
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 12
________________ 83 प्रीतिई भला पारेवडा रे, जेहनइ विरह न थायो, अह्म सरखा जंवारडु रे, दैव तिइं सरज्यउ कायो । दैव तइं सरज्यउ कांइ असारु, दुखीआं माणसनु रे जंवारु, सजन वियोगिई प्राण धरीजइ, नेह बदनामी तु सी कीजइ । ८ जी० जिम मन पुहचइ अलज्यु रे, तिम जउ पुहचइ बांहो, दूरि वसंतां साजना रे, सफल हुइ ऊमाहो । सफल हुइ ऊमाह ज एहो, सेव करूं जिम राति नइ दीहो, वचन तुह्मारां हैडइ जागइ, अवर न कहि-स्युं ए मन लागइ । ९ जी० सुहणांमां साजन मिष्यां रे, लागु रंग अतीवो, नीद गमाइ पापीइ रे, देखी न सकइ दैवो । देखी न सकइ दैव ज पापी, जागति विरहई देह संतापी, मेह विण खलहल वूढां पाणी, दुखभरि रोतां राति विहाणी । १० जी० सूडा, तुं बंधव माहरु रे, संदेसु कहइ जाइ, तुह्म गुण कामणगारडा रे, कइसी भरकी लाइ । कइसी भरकी लाइ, हो सांइ, ___ तुह्म विण अवर न किंपि सुहाई, मननी वात कहुं कुण आगई, गुण संभारइ बहु दुःख जागइ । ११ जी० वेध दवानल लाई रह्या रे, बलइ ते हैडा-वेड्यो, अवटाइ मन माहरू रे, कुण जाणइ परपीड्यो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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