Book Title: Simandharjin Chandraula Stavan
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ उपरांत पुनरावर्तित थता भाग माटे क प्रत मात्र प्रथमाक्षर मूके छे (थोडेक स्थाने ए पण चुकाई गयेल छे), ज्यारे ग प्रत ए फरीने आपे छे, एटले ए बाबतमां पण ग प्रत काममां आवी छे केमके पुनरावर्तित थता भागमां मूळनो छेल्लो दीर्घ अक्षर हस्व करवानो थाय छे. दुर्भाग्ये ग प्रतना प्रथम पत्रनी पाछळनी बाजु झेरोक्ष थई नथी. पण आवां स्थानोए अन्य प्रतोनी मदद पण मळी शकी छे. जोडणी वगेरे यथातथ रहेवा देवामां आवेल छे, मात्र क्यांक नकामो अनुस्वार छोडी देवानो थयो छे. सीमंधर जिन चंद्राउला स्तवन विजयवंत पुष्कलावती रे, विजया पुव्वविदेहो, पुर पुंडरीक पुंडरगिणी रे, सुणतां हुई सनेहो । सुणतां हुइ सनेह रे हैइ, स्वामि सीमंधर वीनती कहीइ, गुणओभागइ त्रिभुवनि दीपइ, केवलन्यानिइं कुमल ज जीपइ । १ जी जीवनजी रे, तुं मनमोहन स्वामि, सुणयो वीनती रे, उलगडी रे संदेसि मानयो दूरिथी । द्रुपद धन ते नगर ते रूंखडां रे, धन ते दिसि ते वाटो, मनमोहन, जिहां तुम्हे वसु रे, गुणक्रियाणक-हाटो० । गुण कियाणक-हाट, वाहालेसर, धन धन माणस ते अलवेसर, निसिदिन जे तुह्म पास न छंडइ, अवरहकुं विहि विरहई दंडइ । २ जी० माणिकमोतीडे जडी रे, कइ ए मोहणवेल्यो, वली वली ए दिसि जोयंतां रे, हैडइ हुइ रंगरेल्यो । हैडइ हुइ रंगरेलि जोयंतां, पंखीनई संदेस पूछंतां, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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