Book Title: Siddhachakra Vidhan Author(s): Santlal Pandit Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur View full book textPage 8
________________ १६, फिर ३२, ६४, १२८, २५६, ५१२ एवं १०२४ क्रमश बढते जाते हैं। अष्टाह्निका में , अष्टमी से लेकर पूर्णमासी तक यह पूजा की जाती है और नवें दिन जाप्य, शाति विसर्जन होम आदि किया जाता है। सिद्ध० वि० पूर्ण विधान करने वाले सज्जनो को पूजन प्रारम्भ करने के साथ ही जाप्य पहले। प्रारम्भ कर देना चाहिए । उत्कृष्ट जाप्य सवालाख माना गया है । जाप्य एक व्यक्ति अथवा कई व्यक्ति कर सकते हैं । प्रतिदिन निश्चित संख्या मे जाप्य करके नवें दिन पूर्ण करके हवन । करना चाहिए । जाप्य करने वाला शुद्ध वस्त्र पहन कर मनसा वाचा कर्मणा शुद्ध होकर जाप्य करे । इन दिनो मयम व ब्रह्मचर्य पूर्वक रहे, मर्यादित भोजन करे तथा जमीन या तख्त पर। सोवे । जाप्य प्रात एव सायं दोनो बार किये जा सकते हैं । जाप्य प्रारम्भ करने मे जो बैठे उन्हे ही जाप्य पूरे करने चाहिए। यदि सवा लाख न कर सके तो एक लाख अथवा ५१ हजार अथवा कम से कम ८००० तो करे ही । जाप्य मत्र-ॐ ह्री असि आ उ सा अनाहत:विद्यायै नम' अथवा 'ॐ ह्री असि आ उ सा नम' होने चाहिए । ___ मडल गोलाकार बनाना चाहिए जैसा छपे हुए नक्शे मे दिया गया है । त्रिकोण मंडल पूजा भी होते हैं । मडल के बीच मे सिंहासन मे यत्रराज स्थापित करना चाहिए और चारो कोनो ४ मे चार अक्षत सुपारी हल्दो आदि मागलिक द्रव्यो से युक्त मगल कलश रखने चाहिए। वे अष्टमPage Navigation
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