Book Title: Siddha Hemchandra Shabdanushasan Bruhad Vrutti Part 01
Author(s): Vajrasenvijay
Publisher: Bherulal Kanaiyalal Religious Trust

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Page 7
________________ अध्ययन-अध्यापन में सुविधा की दृष्टि से इस महाकाय प्रथ को तीन भागों में विभक्त किया , गया है। प्रथम भाग-१ से १० पाद (ढाई अध्याय) । द्वितीय भाग-११ से २० पाद (ढाई अध्याय) स्वोपज्ञ-उणादि, धातुपाठ । तृतीय भाग-२१ से २८ पाद (दो अध्याय) लिंगानुशासन, सूत्रोंकाअकारादिकम । आठ अध्यात्मक इस विशाल ग्रथ को तीन भाग में प्रकाशित करने का निर्णय होने पर एक ही समय में अलग-अलग तीन प्रेसों में मुद्रण कार्य प्रारम्भ हुआ। आज इस बात का आनंद है किअठाइस वर्ष पहेले जो भावना बीज रूप से अंतर में पड़ी थी, वह आज एक विशाल वृक्ष रुप होकर फलीभूत हो रही हैं । अभ्यासीओ के लिए छत्तीस हजार से भी अधिक श्लोक प्रमाण और सोलहसो से भी अधिक पृष्ठ का विस्तार रखता हुआ यह सिद्धहेमबृहवृत्ति लघुन्यास प्रथ का प्रथमभाग प्रकाशित हो रहा है । दुसरे दो भाग जल्दी प्रकाशित हो इसलिए प्रकाशक संस्था प्रयत्न कर रही हैं । इस ग्रथ के पुन: प्रकाशन के भगीरथ कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए परम पूज्य जिनशासनप्रभावक, संघहितचिंतक, सुविशाल गच्छाधिपति, आचार्य देवश्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के शुभाशीर्वाद और परम पूज्य अध्यात्मयोगी निःस्पृह शिरोमणि परम गुरुदेव पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर्य श्री की सतत कृपा वृष्टि, परम पूज्य सौजन्यमूर्ति, आचार्य देव श्रीमद्विजय प्रद्योतन सूरीश्वरजी महाराज साहेब की सतत प्रेरणा और परम पूज्य उपकारी गुरुदेव आचार्य देव श्रीमद् विजय कुन्दकुन्द सूरीश्वरजी महाराज की अदृश्य कृपा और मेरे संसारी पिता पू. मुनिराज श्री महासेन विजयजी म. की सहानुभूति प्राप्त होती रही है। उन राज्यों की असीम शक्ति के बल से ही यह कार्य निर्विघ्न परिपूर्ण हुआ है। उन सब उपकारीयो के पावन चरणों में कोटिशः वंदना पूज्य कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा की व्याकरण विषयक यह कृति कितनी सरल और सुगम है यह तो अभ्यास करने वाले ही समज सकते हैं। कहा भी है कि व्याकरणात् पद सिद्धिः पदसिद्धरर्थनिर्णयो भवति । अर्थात् तत्त्वज्ञान तत्त्वज्ञानात् परंश्रेयः ।। अर्थात् व्याकरण से पद की सिद्धि होती हैं । पदसिद्धि से अर्थ का निर्णय होता हैं । और अर्थ के निर्णय से तत्त्व की सिद्धि होती है । तत्त्वसिद्धि मुक्ति की प्राप्ति में हेतुभूत बन सकती है ।। इस दृष्टि से व्याकरण के अध्ययन का महत्त्व है । अभ्यासी महात्माओं इस ध्येय पूर्वक इस प्रथ का अध्यन करेंगे तो संपादन का हमरा श्रम विशेष सफल होगा 1 पैसे तो श्रुत सेवा का आर्व लाभ मिलने से संपादन का श्रम सफल ही है। इस ग्रथ के प्रिन्टीग में मतिमंदता से दृष्टिदोष से या प्रेसदोष से कोई क्षतियाँ रही हो. वह सुजन सुधारने की कृपा करे । खास-खास अद्धियां का शुद्धिपत्र दिया गया है। इसके प्रिन्टींग में हिन्दुस्तान प्रिन्टर्स के मालिक और पं. चेतन प्रकाशजी पाटनी का भी आर्व सहयोग मिला है। ... . . . ... . -वज्रसेन विजय

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