Book Title: Siddha Hemchandra Shabdanushasan Bruhad Vrutti Part 01
Author(s): Vajrasenvijay
Publisher: Bherulal Kanaiyalal Religious Trust

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Page 11
________________ १० उस ने कहा, 'भगवन्त ! चांगदेव की दीक्षा के महोत्सव का लाभ मुझे दीजिए !' आचार्य भगवन्त ने उस की भावना का स्वीकार किया और उदयन मन्त्री ने चांगदेव की दीक्षा की भव्य तैयारियाँ प्रारम्भ कर दी । महासुद १४, ११४५ शनिवार के शुभ दिन रोहिणी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर और सूर्य आदि सभी ग्रह उच्च स्थान में आने पर पूज्य आचार्यश्री देवचन्द्रसूरिजी म. ने अपने वरद हस्तों से चांगदेव को दीक्षा प्रदान की और नूतन मुनि का 'सोमचन्द्र' नामकरण किया । श्वेत वस्त्रों में सुसज्जित सोमचन्द्र मुनि मुख मण्डल पर अद्भुत तेजस्विता दिखाई दे रही थी । इधर जब चाचिग को पता चला कि पाहिनी ने पुत्ररत्न गुरुचरणों में समर्पित कर दिया है - उसे बड़ा खेद हुआ । पुत्र को घर लाने के लिए वह स्वयं खंभात पहुंचा परन्तु उदयन मन्त्री आचार्य श्री के समझाने पर उसने पुत्र मोह का त्याग कर दिया । दीक्षा अङ्गीकार करने के बाद सोमचन्द्र मुनि संयम की निर्मल साधना और स्वाध्याय में लग गए । वहुत ही अल्पकाल में तर्क, लक्षण, साहित्य, भाषा, न्याय आदि विषयों में वे नितॄण बन गए । सरस्वती साधना : एक बार 'सोमचन्द्र' मुनि ने सोचा, 'पूर्वकाल में तो महात्माओं की बुद्धि कितना विशाल थी... वे पदानुसारिणी बुद्धि के निधान थे और हमारे में कैसी अल्प बुद्धि है ? इस प्रकार सोचकर उन्होंने काश्मीर जाकर सरस्वती को सिद्ध करने का दृढ संकल्प किया और अपने गुरुदेव की आज्ञा और आशीर्वाद को प्राप्त कर काश्मीर की ओर प्रयाण कर दिया । सोमचन्द्र मुनि विहार करते हुए ""तावतार तीर्थ में आए और वहाँ उन्होंने एकाग्रतापूर्वक सरस्वती का ध्यान किया, उनके ध्यान प्रभाव से सरस्वती देवी प्रत्यक्ष उपस्थित हुई, और बोली, हे वत्स ! मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हू ं, तुम्हारी सब इच्छाएँ पूर्ण होगी और अब तुम्हे काश्मीर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है ।' इस प्रकार कहकर देवी अदृश्य हो गई । सरस्वती से वरदान प्राप्त कर मुनि सोमचन्द्र प्रसन्न हो गए और उन्होंने काश्मीर जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया । एक बार आचार्य देवचन्द्रसूरिजी म. अपने शिष्य परिवार के साथ विहार करते हुए नागपुर पधारे । उस नगर में धनद नामका श्रेष्ठी रहता था । कोई दुर्भाग्य के उदय से उसकी सब सम्पत्ति नष्ट हो गई और वह निर्धन दशा में जीवन बिताने लगा | मुनि सोमचन्द्र अन्य मुनि के साथ धनद श्रेष्ठी के घर गोचरी पधारे । घर की आर्थिक स्थिति और दरिद्रजन योग्य भोजन सामग्री को देखकर सोमचन्द्र मुनि को बड़ा आश्चर्य हुआ, 'अरे ! इस सेठ के घर में सोने का ढेर पड़ा है... फिर भी ऐसी दरिद्र अवस्था में क्यों जी रहा है ?' सोमचन्द्रमुनि ने जब यह बात वीरचन्द्रगणि को कही तो उन्हें भी बड़ा आश्चर्य हुआ और कहा, 'कहाँ है वह सोने का ढेर ?' श्रेष्ठी ने यह बात सुनी, किन्तु उसे तो वहाँ कोयले ही नजर आ रहे थे । श्रेष्ठी ने सोचा 'इस पवित्र बालमुनि के दृष्टि स्पर्श से ही वह कोयला स्वर्ण बन गया लगता है । सोमचन्द्र मुनि के स्पर्श 7

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