________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०
जून २०१२ भावुकता से भीगी आँखें बाट तुम्हारी निहारे बिना तुम्हारे मन वीणा के तार रुठ गये सारे होंठ तरसते और तडपते पल पल तुम्हें पुकारे दर्द के मारे प्राण बेचारे बिना तुम्हारे हारे
याद तुम्हारी आये और ये नैन हो उठे छलक छलक पलकों के साये में सिमटे आँसू रोके रहे कब तक तकते तकते राह तुम्हारी थक गयी ये जिन्दगानी
किसे पता है कब सूखेगा इन आँखों का पानी बिना तुम्हारे और किसी को मन ना मेरा चाहे तेरी प्रतीक्षा के फूलों से खिली खिली है निगाहें, क्या तो उदासी, क्या मायूसी सब मुझको मंजूर है । लेना क्या दुनिया से मुझे जो एक तू मुझसे दूर है ?
दुनिया के दरिये में न डूबे यह जीवन की नौका चारों ओर से घेरे मुझको पाप करम का झोंका गीतों को स्वर देना ऐसा मिले तुम्हारी झांकी
स्नेहिल स्पर्श से खिले-खुले अब मेरी मन-बैशाखी भीतर मेरा आलोकित हो, ऐसी दे ना ज्योति दुःख के सागर में भी दूं दूं प्रसन्नता का मोती वैर और विषाद भूलाकर प्रेम की बीन बनाऊँ स्नेह सुमन से सुरभित मेरे तन-मन-नयन सजाऊँ
चरम तीर्थंकर महावीरस्वामी शासन के उपकारी प्राणीमात्र के मंगलहे तु धर्म दिया सुखकारी सुख का सागर उछल रहा है प्रभु के चरणशरण में
जो आये उसके टल जाए फेरे जनम मरण के तेरी प्रीत में लीन बनूं मैं यही है मेरी कामना रंग भरा है इस जीवन में मैंने तुम्हारे नामका इस जीवन का हर पल बीते करते तेरी आराधना तेरी भक्ति तेरी पूजा मेरे जीवन की साधना
प्रभो तुम्हारे चरणों में आकर करते वंदन भाव से आधि-व्याधि और उपाधि मिटे आपके प्रभाव से सुख दुःख में समवृत्ति रखू मैं ऐसी देना शक्ति जनम जनम मुझे मिले तुम्हारी भक्ति और अनुरक्ति
For Private and Personal Use Only