Book Title: Shrutsagar Ank 2012 06 017
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org तुं सदा सहेजी तुझ तन तेजी दीपैं दीपक प्रकास जे अष्टमहाभय दुरिं टालो गालो वयरी वास खुवार करो खलखिण दाटौ बाटो वज्र सिलायें पोउत्र शूलै दक्षिण मुलें जिम मुलैथी जाय तस लजा पाडो वेग विगडो गाडी गर्तामाहिं तस नांम नसाडो दूरिं त्राडी फाडो पकडी वांह हिंवै नांम प्रकासो किस्युं कहीजै तुं जांणे सवि वात जे देखी द्वेष घरै निकारण द्वेषी महा श्रीजात ते वेग बिगाडो पारौं पाडो चाढो गर्धभ पुठि कर ग्रही कटारी घणुं अटारी मारिज जिग गुंठि मोह धरीजै सदा सुहाई माहि महिमावंत सुख संपति आपो चिंता कापो सुख थापी प्रसिधि आई पउमाई बहु रिधिदाई सदा सुहाई नित्य वर विभव बधारो दर्शन प्यारो तारो मुझ एकांति ऐं कांरी आणंदसुं आई क्लीं कारी बरदायीसू सोअंति नम जोड जयंता रिद्धि सिद्धि में पाई मुझ महियल मल्हे पालि नैं सके कोई जे तुझनें ध्यावै सदा आराहँ ते जिंग मोटा होय जे मोहन भुरति अदभूत सूरति सेवक पुरति आस बासवर वंदित सदा आंनिंदित सूरज तेज प्रकास चौसठ पीछे प्रगट प्रभावी बद्धावी नृप आप नमो नमी तुझ नांम अनेका जपुं सदाई जाप २४ कवित्ततुझ पाय पसाय बहु बुद्धि रिद्धि बरसिद्धि सदाई पाइजे परतख्य बरदख्य सदाई माइ महिमावंत आस पूरीजे पउमा ज्युं जुगि किर्त्ति निवास पसरइ बहु महिमा श्रीपारसनाथ सासणस्वरीश्री सेवक जीण साधारणी - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुध चारित्रसागर गुरु सिख्य कल्याणन जय जय कारणी २५ प्रतिलेखन पुष्पिका इतिश्री भगवति श्रीपदमाउती स्तोत्र संपूर्ण लिखतं पं. धीरसागर संवत १७९४ वर्षे श्रीमकसूदायांद मध्ये श्रीरस्तु इति पद्मावती स्तोत्र प्रति परिचय प्रत संख्या ३०८३२. जिसमें ३ पन्ने हैं. जो सम्पूर्ण है. प्रत का नाप - प्रत की लंबाई-चौड़ाई२५.५०-११ से.मी. है. प्रति पृष्ठ पंक्ति संख्या ११ से १२ है. प्रति पंक्ति अक्षर ३७ से ४१ है. अक्षर सामान्य हैं. उपरोक्त प्रति कोबा गांधीनगर स्थित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में सुरक्षित है। अन्य प्रत संख्या ३७९०५. ३१२४०. ३१३२३. (३०४६७- खड़ी मि है अक्षर बेडौला है काल पानी प्रभावित है.) For Private and Personal Use Only जून २०१२

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