Book Title: Shrutsagar Ank 2012 06 017
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् पासागरसूरीश्वरजी की अमृतमयी वाणी (बोरीज, गांधीनगर- 24.07.05) जीवनयात्रा का राजमार्ग अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी, परम कृपालु जिनेश्वर परमात्मा ने संसार के समस्त आत्माओं के कल्याण हेतु, अपनी धर्मदेशना के माध्यम से दुनिया पर सबसे महान उपकार किया है. यदि परमात्मा अपने प्रवचन पीयूष का पान कराये न होते तो हम सभी अज्ञानता रूपी अन्धकार में भटकते होते. प्रवचन द्वारा प्रवृत्ति विकसित होती है, प्रवचन जीवन में परिवर्तन ला सकता है, संकट काल में मार्गदर्शन दे सकता है और परंपरा से प्रवचन पूर्णता प्रदान करता है. 'परमात्मा की वाणी में अखिल जगत का कल्याण सुरक्षित है. जीवन का सम्पूर्ण ज्ञान परमात्मा की वाणी से प्राप्त किया जा सकता है. परमात्मा की वाणी में ही सरस्वती का वास है. परमात्मा की वाणी का श्रवण भी पुण्य का कार्य है. परमात्मा की वाणी से एक प्रकार की तृप्ति मिलती है. भावपूर्वक श्रवण करना भी एक प्रकार की साधना है. इससे जन्म-मृत्यु की परम्परा पर पूर्णविराम लग जाता है. परमात्मवाणी का चमत्कार आपकी अन्तर्चेतना को जगाता है. अपने भावों में आप जागृति लाइए, इससे आत्मा पूर्णता प्राप्त करने में समर्थ होती है.' 'जीवनविकास का राजमार्ग जानने जैसा है.' वर्तमान जीवन तो विनाशोन्मुख है. आपकी बाह्य सभी पदार्थों की प्राप्ति के प्रति अटूट वृत्ति वह पतन का द्वार है. यह समझने जैसी बात है कि यह जीवन जगत को पाने के लिये नहीं बल्कि, स्वयं को प्राप्त करने के लिये मिला है. स्व एवं पर का भेद परख लें. इसका ज्ञान जब तक नहीं होगा तब तक सब निष्फल है. सभी साधनाएँ प्रायः दूषित बन गयी हैं. वर्तमान की प्रदूषित विचारधारा आपकी आत्मा को सर्वनाश करती है. परमात्मा की प्रार्थना करने में भी दरिद्रता देखी जाती है. संसार में से शून्य कैसे बनें उसके लिये विचारो. परमात्मा की प्रार्थनावेला में केवल परमात्मा ही दिखना चाहिये. इसके द्वारा खुद की आत्मानुभूति प्राप्त करनी ऐसा आपका लक्ष्य होना चाहिये.' 'जीवन में की हुई साधना व तपश्चर्या निरर्थक न जाए, उसके लिये जाग्रत रहो. प्रवचन केवल सुनने के लिये नहीं, अपितु आचरण के लिये है. अब तक तो बहुत कुछ सुना, परन्तु जीवन में आचरण करने से शून्य रहे. आप क्या जानते हैं उतने महत्व की बात नहीं जितने कि आप क्या करते हैं उसका महत्व है.' BOOK POST अंक प्रकाशन सौजन्य : संघवी श्री प्रकाशभाई मिश्रीमलजी नथमलजी परिवार (नैनावा निवासी रत्नमणी मेटल्स एन्ड ट्युन्स लि. - अहमदाबाद For Private and Personal Use Only

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