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श्रुतसागर, भाद्रपद २०५४
१२ भूतलकक्ष के ३४ नम्बर की देहरी में खुदाई करने पर बहुत सी खण्डित मूर्तियाँ निकली थी जिन्हें संरक्षित किया गया है. भूतल कक्ष में एक साथ ५० व्यक्तियों के खड़े होने का स्थान है. कर्णपरम्परानुसार यहाँ स्थित भूतलमार्ग रांतेज से मोढेरा होते हुए पाटण तक जाता है. अनुमानतः यह मार्ग राजा कुमारपाल के समय का होना चाहिए. पाटण से प्रतिदिन श्रावक समुदाय पूजा करने के लिए यहाँ आते थे. बावन जिनालय के प्रत्येक देहरी में परिकर था. इन परिकरों के ऊपर वि.सं. ११०० से १३०० के लेख भी पाए गए हैं. भूतल कक्ष के देहरी संख्या ४९ में श्री सरस्वती देवी की भव्य प्रतिमा है जो अत्यन्त प्राचीन है. देहरियाँ जहाँ समाप्त होती है वहाँ श्रावकों की चार प्रतिमाएँ हैं जिन पर वि.सं. १३०८ के लेख एवं लक्ष्मण सिंह संग्राम सिंह, रत्नादेवी आदि नाम अंकित हैं. देरासर के अन्दर प्रविष्ट होते ही गर्भगृह में श्री महावीर प्रभु की भव्य प्रतिमा है.
रांतेज तीर्थ के चमत्कार :
१. एक रात एक चोर मूल गर्भगृह का ताला तोड़कर भगवान का मुकुट आभूषण आदि लेकर चल बना. जैसे ही गाँव की सीमा पर पहुँचा, उसकी आँखों की रोशनी चली गई. चारों ओर अंधेरा छा गया, चोर घबरा गया, उसे लगा कि यह चोरी का ही परिणाम है. उसने संकल्प किया कि यदि मेरी आँखों की रोशनी वापस आ जाएगी तो आज के बाद चोरी नहीं करूँगा तथा अब तक जो चोरी की है, उसके प्रायश्चित के रूप में भगवान के प्रक्षाल हेतु एक गाय अर्पित करूँगा. ऐसा संकल्प करते ही उसकी आँखों की रोशनी वापस आ गई. वह अत्यन्त आश्चर्यचकित व भगवान के प्रति श्रद्धावान हो गया. उसने तुरन्त सारे आभूषण मन्दिर में यथास्थान रख दिए व वापस घर आ गया. दूसरे दिन एक गाय लेकर पुजारी के पास गया, उससे सारी बात कही तथा समस्त श्रीसंघ को बुलाकर गाय अर्पित कर दी.
२. यहाँ प्रायः एक सुन्दर नागराज प्रगट होते हैं जो किसी को भी उँसते नहीं हैं. ऐसा कहा जाता है कि अधिष्ठायक देव नाग के रूप में इस तीर्थ की रक्षा करते हैं.
३. इस तीर्थक्षेत्र में आज तक किसी की मृत्यु नहीं हुई. एक बार उपाश्रय में व्याख्यान चल रहा था. उसी समय लगभग चार साल का एक बच्चा ऊपर से गिर गया. पन्द्रह फुट की ऊँचाई से गिरने पर भी वह बिल्कुल भला चंगा था.
इस प्रकार के अनेक चमत्कार इस तीर्थक्षेत्र में प्रायः होते रहते हैं. यहाँ की प्राकृतिक सुषमा, शान्त तथा स्वच्छ वातावरण यात्रियों के मन में श्रद्धा और भक्ति का पवित्र भाव प्रगट करता है. रांतेज तीर्थ में पंन्यास प्रवर श्री अरुणोदयसागरजी म.सा. की प्रेरणा से पुनरुद्धार कार्य:
हो कि इस तीर्थ का पुनरुद्धार कार्य प.प. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसरीश्वरजी म.सा. के शिष्य ज्योतिर्विद पंन्यास प्रवर श्री अरुणोदयसागरजी गणि की प्रेरणा से प्रारम्भ हुआ है. पृष्ठ १६ का शेष]
अनेकान्तवाद की दृष्टि से पूज्य गुरुदेव के कार्य अनेकान्तवाद के सही स्वरूप को भारतवर्ष में ही नहीं विदेशों में भी प्रस्तुत करने के उद्देश्य से आचार्यश्री ने कोबा में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र एवं आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर जैसी पावन संस्थाओं की मात्र परिकल्पना ही नहीं की, अपितु अपने अथक प्रयासों से इसे जीवन्त बनाया है- आर्य संस्कृति की धरोहर को अक्षुण्ण बनाये रखने में अपना असीम योगदान दिया है, दे रहे हैं तथा भविक जीवों को इसमें योगदान करने को प्रेरित कर रहे हैं.
जैन समाज एवं पूरे विश्व के लिये गांधीनगर स्थित कोबा की यह पावन भूमि एक स्थावर तीर्थ और स्वयं आचार्यश्री एक जंगम तीर्थ के समान हैं. अनेकान्तवाद के इस तीर्थधाम को हमारा सादर वन्दन..
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