Book Title: Shrutsagar Ank 1998 09 007
Author(s): Kanubhai Shah, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर, भाद्रपद 2054 अनेकान्तवाद की दृष्टि से पूज्य गुरुदेव के कार्य सुश्री विनीता मुकेश जैन चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के द्वारा बताये गये पांच महाव्रतों- अहिंसा, अमृषावाद, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह की महत्ता एवं उपयुक्तता पर किंचित् मात्र भी संदेह करने का साहस सिर्फ अज्ञानी एवं मिथ्यात्वी मानव ही कर सकता है. यूं देखा जाये तो प्रत्येक महाव्रत अपने आप में अन्य सभी का भी समावेश कर लेता है किन्तु सामान्य आत्माओं के सहज उर्ध्वगमन में सहायक रूप में इन्हें पृथक-पृथक रूप से समझना एवं अपनाना अधिक उपयोगी बनता है. इसी संदर्भ में वर्तमान युग की प्रासंगिकता के परिप्रेक्ष्य में यदि इन पांचों महाव्रतों को देखा जाये तो प्रत्येक समस्या के समाधान रूप में 'अनेकान्तवाद' को सर्वोच्च प्राथमिकता देना अतिशयोक्ति नहीं होगा. 'अनेकान्तवाद' शब्द ही विशालता एवं व्यापकता की अनुभूति कराता है. और जिसे इस सिद्धान्त की जैन दर्शन में बताई भावप्रधान व्याख्या को आत्मसात् करना है, व्यवहार एवं निश्चय दोनों में चरितार्थ करना है. उसे अनेकान्तवाद को समझने के लिए सुगुरू का सानिध्य पाना अपरिहार्य ही नहीं, अत्यंत ही अनिवार्य है. भारत देश की आर्य भूमि में आज भी श्रमण संस्कृति फल फूल रही है तथा यह अनेकानेक आत्माओ को मोक्षगामी बनाने में सहायक है. श्रमण संस्कृति का एक आधारस्तम्भ साधु है जिसे हम आचार्य, उपाध्याय एवं मुनि के रूप में जानते हैं. हमारा यह सौभाग्य है कि वर्तमान दुषम काल में भी हमारे देश को एक ऐसे ही सुगुरू का सांनिध्य मिला है जिन्हें हम राष्ट्रसन्त, युगदृष्टा, प्रखर प्रवचनकार, आचार्य देवेश श्रीमत पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब के नाम से जानते हैं. आचार्यश्री के बहुआयामी व्यक्तित्व में अनेकान्तवाद एक सामान्य रत्न ही नहीं बल्कि एक देदीप्यमान रत्नमाला बनकर जैन शासन को ही नहीं वरन प्रत्येक मुमुक्षु आत्मा को आलोकित कर रही है, ताकि वह आत्मा मोक्ष मार्ग की अपनी यात्रा सहजता एवं सरलता से कर सके. आचार्य श्री ने अपने संयम जीवन की 75,000 किलो मीटर से भी अधिक भारत एवं नेपाल की पद यात्राओं में अपने प्रवचनों के द्वारा जागृत आत्माओं के साथ-साथ सुप्तप्राय आत्माओं को भी इस 'अनेकान्तवाद' का अमृतपान कराया है. अरिहंत परमात्मा की असीम करुणा का स्रोत मानों आचार्यश्री के प्रवचनों में अविरत बहता ही रहता है. आपके प्रवचनों में विविध दृष्टान्तों का समायोजन बस एक ही उद्देश्य के लिए होता है- येन केन प्रकारेण अनेकान्तवाद के सहारे प्रत्येक आत्मा उर्ध्वगामी बनें; उसका अधोपतन रुके. आचार्यश्री की इस मंगल कामना के लिए प्रत्येक जन का उनके प्रति अनुगृहित होना स्वाभाविक ही है. [शेष पृष्ठ 12 पर Book Post/Printed Matter सेवा में - प्रेषक: संपादक, श्रुत सागर आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर 382 009 (INDIA) प्रकाशक : सचिव, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर - 382 009 For Private and Personal Use Only

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