Book Title: Shrutsagar Ank 1998 09 007
Author(s): Kanubhai Shah, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर, भाद्रपद २०५४ १४ कर्म का अस्तित्व (चंद्रहास त्रिवेदी कृत "कर्मवादना रहस्यो" का अंश) अनुः दिव्यकान्त परीख विश्व के लगभग सभी धर्मों ने कर्म की महत्ता स्वीकार की है. संसार में व्यक्ति व्यक्ति के बीच में जो असमानता दिखाई दे रही है उसे किस तरह उचित ठहराना यह एक महाप्रश्न है. पूर्वकर्म के अस्तित्व को स्वीकारे बिना संसार में प्रवर्त्तमान असमानता को समझना लगभग अशक्य है, असंभव है. अतः संसार में सर्व धर्मों ने एक या दूसरे प्रकार से कर्म के प्रभुत्व का स्वीकार किया है. इस असमानता के कारणों की खोज करते-करते सभी को कर्म या पूर्व कर्म का आधार लेना पड़ा. कोई बालक धनवान के यहाँ जन्म लेता है और जन्म के साथ ही करोड़ों की संपत्ति का मालिक बन जाता है. जब कि दुसरा बालक गंदी-अंधेरी कुटिया में जन्म लेता है जिसके लिये साधारण अन्न या वस्त्र प्राप्त करना भी मुश्किल होता है. कोई जन्म के साथ ही अपंग होता है तो कोई किसी भी तरह गिरने पटकाने के बावजूद भी स्वस्थ होता है, किसी को पढ़ने के लिये पाठशाला जाना भी कठिन होता है, किसी को जीवन में आगे बढ़ने के अवसर सहज मे प्राप्त होते हैं, कोई इन्सान कैसी भी प्रतिकूल परिस्थितियों में से रास्ता निकालकर आगे बढ़ते हैं तो दूसरी ओर कईं लोग प्राप्त हुए भाग्य अवसरों को खोकर अंत में रास्ते के भिखारी बन जाते हैं. कोई रूप में सुन्दर-मनोहर होता है तो कोई कुरूप होता है. कभी सामान्य रूप वाले को स्वरूपवान पत्नी प्राप्त होती है तो दूसरी ओर स्वरूपवान को किसी सामान्य मनुष्य की पत्नी बन कर संसार चलाना पड़ता है. किसी को सुशील स्वभाव की पत्नी होती है तो किसी मनुष्य को कर्कश स्वभाव वाली पत्नी मिलती है. किसी के कर्कश वचनों पर अमल करने के लिये सभी तत्पर रहते हैं तो किसी की नम्रतापूर्वक विनती पर भी कोई अमल नहीं करता है. जन्मजात असमानता रंग, रूप, संपत्ति, बुद्धि, संयोग, स्वभाव व व्यक्तित्व आदि के लिये किसे जिम्मेदार कहेंगे? यदि भगवान ही हमें जन्म देता है तो व्यक्ति-व्यक्ति के बीच ऐसा अंतर क्यों रखता है. यदि भगवान ही इस तरह प्रिय-अप्रिय करते हों तो फिर मनुष्य कहाँ जाकर न्याय की याचना करें? इस तरह के भेद रखने वाले को क्या भगवान कहा जा सकता है? संसार में दो प्रकार से असमानता देखी जा सकती है. एक है जन्मजात असमानता, निर्दोष जन्म लेनेवाले शिशुओं के बीच संयोग, शरीर रचना, भाग्य इत्यादि की भिन्नता पाई जाती है, इसके लिये पूर्व कर्म के अलावा किसी को भी जिम्मेदार नहीं माना जा सकता. दूसरे प्रकार की असमानता भी संसार में प्रवर्तमान है. एक ही प्रकार के पुरुषार्थ में एक सफल हो पाता है जबकि दूसरा विफल रहता है. एक को बहुत सी प्रतिष्ठा सहज में प्राप्त हो जाती है तो दूसरा काबिल होते हए भी सभी से अनजान रहता है. एक आदमी के वचनों पर कार्य करने के लिये हर कोई तैयार रहता है जब कि दूसरे आदमी की विनती पर भी कोई प्रतिभाव नहीं देता. किसी को अनेक सुख-सुविधा होते हुए भी अशांति रहती है तो कोई रूखी-सूखी रोटी खाकर, नदी का पानी पीकर, वृक्ष के नीचे आराम से सो सकता है. किसी को ऊँची छत से गिरने से भी कुछ हानि नहीं होती है तो किसी को सामान्य ठोकर लगने से हड्डियाँ टूटने पर अस्पताल में रहना पड़ता है. किसी की स्मरण शक्ति इतनी तेज होती है कि एक बार पढ़ लेने से उसे याद रह जाता है तो कोई रात-दिन पठन करने पर भी थोड़ा ही याद रख सकता है. किसी के पास सुख संपत्ति की बेशमार मात्रा होती है कि उसका उपयोग नहीं हो पाता तो किसी के पास उपयोग करने की शक्ति होने For Private and Personal Use Only

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