Book Title: Shrutsagar Ank 1998 09 007
Author(s): Kanubhai Shah, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर, भाद्रपद २०५४ ग्रंथावलोकन सचित्र जैन कथा सागर (भाग १ व २) पूज्य पाद गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा संस्कृत भाषा में विभिन्न कथा ग्रंथों से संगृहीत १०१ कथाओं के संग्रहरूम श्री कथा सागर ग्रंथ का अनुवाद गुजराती भाषा में श्री मफतलालभाई गांधी द्वारा किया गया था. इस ग्रंथ का गुजराती भाषियों ने भली-भाँति रसास्वादन किया और ऐसा प्रतीत होने लगा कि बहुत से हिन्दी भाषियों को इस ग्रंथ में अन्तर्निहित जीवन में सदुपयोगी धर्मसंदेश का लाभ प्राप्त हो. इसके लिए प.पू. पंन्यास श्री अरुणोदयसागरजी म.सा. की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से प्रस्तुत हिन्दी अनवाद श्री नैनमलजी सराणा द्वारा किया गया है और इसे दो भागों में जैन कथा सागर नाम से प्रकाशित किया गया है. इस ग्रंथ का संपादन पू. साध्वीश्री शुभ्रांजनाश्रीजी म.सा. ने किया है. जैन कथा सागर के प्रथम भाग में २२ कथाएँ एवं द्वितीय भाग में २३ से ४०वीं कथा तक का अनुवाद प्रस्तुत किया गया है. शेष कथाओं का प्रकाशन बाकी है. ये कथाएँ श्राद्धविधि, श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, श्राद्धगुणविवरण, शीलोपदेशमाला, उपदेशमाला, धर्मकल्पद्रुम, त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, प्रस्तावशतक, कथारत्नाकर, परिशिष्ट पर्व आदि ग्रंथों से निस्सृत है. इन कथाओं में छोटी एवं बड़ी दोनों प्रकार की कथाएँ सम्मिलित हैं. जिनका उद्देश्य मानव जीवन के दुर्गुणों का नाश करके सदगुणों का पोषण, संवर्धन, संप्रसारण करना है. त्याग, विनय, विवेक, वैराग्य, सत्य, अहिंसा, आदि का उदय होकर जीव धर्माभिमुख एवं आत्माभिमुख हो यही भावना इनके कर्ताओं की रही हैं. इन कथाओं में अन्य कथाओं के साथ. ही अवन्तीसुकुमाल का वृत्तान्त, मेघकुमार का कथानक, महात्मा चिलाती पुत्र, झांझरिया मुनि, कपिल केवली की कथा, यशोधर चरित्र, गजसुकुमाल मुनि, चक्रवर्ती भरत, आर्द्रकुमार का वृत्तान्त आदि कथाएँ वाचक के मन को स्पर्श करने में अत्यन्त सफल है. ये जीवन के विविध पक्षों को स्पर्श करती हैं. इन कथाओं का अनुशीलन, रसास्वादन जीव को प्रबल आत्मिक बल देता है. इस कथा सागर में सरल एवं सुबोध हिन्दी भाषा में भाववाही, हृदयस्पर्शी वर्णन प्रस्तुत किया गया है. यत्र-तत्र रेखाचित्रों से कथावस्तु को समझाने का प्रशंसनीय प्रयास किया गया है. पुस्तक के प्रारम्भ में युवा विद्वान डॉ. जितेन्द्र बी. शाह ने विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना लिखकर पुस्तक की शोभा में चार चाँद लगा दिए हैं. ईस्वी सन् १९५३ में पं. श्री शिवान्दविजयजी ने गुजराती ग्रंथ के हिन्दी अनुवाद की माँग जैन कथा सागर के तीसरे भाग की प्रस्तावना में अभिव्यक्त की थी उसे पूरा करने में गणिवर्य श्री अरुणोदयसागरजी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है. एतदर्थ आपश्री तथा संलग्न महानुभावों का वाचक वर्ग ऋणी रहेगा. साथ ही इन दो भागों को पढ़ते ही शेष कथाओं को भी पढ़ने की सहज उत्सुकता होगी. जिसके विषय में आशा रखी जा सकती है कि शीघ्र ही शेष कथाएँ भी प्रकाशित हो जाएँगी. इस अनुवाद कार्य से निस्संदेह समाज को एक नई दिशा मिली है. इससे प्रेरणा प्राप्त कर अनेक ऐसे प्रकाशन संभव किए जा सकते हैं जो अभी मात्र गुजराती भाषा में ही उपलब्ध हैं किन्तु बहुसंख्य वर्ग इनसे अछूता रहा है. (सचित्र) जैन कथा सागर , भाग १ व २, संग्राहकः आचार्य श्री कैलाससागरसूरि म.सा. प्रेरक व मार्गदर्शक: गणिवर्य श्री अरुणोदयसागरजी म.सा. संपादिकाः साध्वी श्री शुभ्रांजनाश्रीजी म.सा., अनुवादकः श्री नैनमल सुराणा आवृत्तिः प्रथम, वर्षः १९९८ मूल्यः ४०/= प्रति भाग, प्रकाशकः अरुणोदय फाऊण्डेशन, कोबा. For Private and Personal Use Only

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