Book Title: Shrutsagar Ank 1998 04 006 Author(s): Kanubhai Shah, Balaji Ganorkar Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba View full book textPage 1
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र का मुखपत्र श्रूत सागर आशीर्वाद : राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. वर्ष २, अंक ६, चैत्र २०५४, अप्रैल १९९८ सम्पादक मण्डल : कनुभाई शाह मनोज जैन डॉ. बालाजी गणोरकर सम्पादकीय हमें विश्वास है कि अभिनव स्वरूप में प्रकाशित यह पत्रिका आपकी अपेक्षाओं की परितप्ति कर मान्यवर श्रुतभक्त, सकेगी. आपके सुझावों एवं प्रतिक्रिया का हम स्वागत श्रुत सागर का यह अंक एक नवीन स्वरूप में करेंगे. आपके समक्ष रखते हए हमें हर्ष हो रहा है. पिछले आपको विदित कराते हए हमें अपार हर्ष हो रहा पाँच अंकों हेतु आपका प्रतिभाव हमारे लिए की है कि कोबा तीर्थ प्रकल्प के प्रेरक व मार्गदर्शक प.प. उत्साहवर्धक रहा. किन्हीं कारणों से प्रस्तुत अंक के गुरुदेव राष्ट्र सन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी प्रकाशन में विलम्ब हुआ, जिसके लिए हमे खेद है. म.सा. ने अपना आगामी चातुर्मास कोबा तीर्थ में ___ हमारा यह उद्देश्य है कि सम्यग् ज्ञानलक्षी सम्पन्न करने की स्वीकृति दे दी है । प्रवृत्तियों के द्वारा श्रुतज्ञान की ओर समाज को जागृत करें, परम्परा से चली आ रही इस बहुमूल्य इस अंक के प्रमुख आकर्षणः विरासत का संरक्षण संवर्धन हो तथा भविष्य की कर्तव्य ही धर्म है पीढ़ी को यह अखण्ड परम्परा के रूप में मिले. आचार्य श्री श्री पद्मसागरसूरि __ प्रवेशांक में पूज्य आचार्यश्री ने शुभ संदेश दिया वृत्तान्त सागर था, तदनुरूप वीतरागवाणी से आबाल-वृद्ध सभी को आत्मा की तीन अवस्थाएँ परिचित कराना है. इस पत्रिका के ज़रिये श्रुतज्ञान बहिरात्म, अन्तरात्म व परमात्म दशायें के प्रति लोगों में आदरभाव उत्पन्न हो और ज्ञान के . -डॉ. जितेन्द्र बी. शाह क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों को सहयोगी बने तथा ऐसी संस्था को मिला आत्मीय स्पर्शः प्रमाणभूत सामग्री दे सके यह भी एक परिलक्षित श्री सोहनलाल चौधरी उद्देश्य है. साथ ही साथ श्री महावीर जैन आराधना *जैन साहित्य-५ केन्द्र के परिसर में चल रही धर्माराधना एवं ज्ञानादि इतिहास के झरोखे से हेमचन्द्राचार्य व व्याकरण की अनेकविध प्रवृत्तियों से लोगों को अवगत कराये. -पं. संजय कुमार झा __ अन्य बात है यह कि भारतीय प्राच्य विद्याओं की ग्रंथावलोकन लुप्तप्राय हो रही उस प्रवृत्ति को पुनर्जीवित करके स्वदेश प्राप्ति लोगों में वह जागृति लाना है जो हमारे श्रुतधरों ने -योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरि विश्वकल्याण हेतु निर्धारित की है. For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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