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जनवरी-२
श्रुतसागर
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रूप
यदि वह विद्वान किसी मैगेजिन अंक के सम्पादक, संशोधक, लेखक आदि के में जुड़ा हुआ हो तो उसकी सूचना आती है. उदाहरण के लिए यदि विद्वान नाम में 'सागरानंद' टाईप कर और मैगेजिन अंक में टिक् करके शोध किया जाए तो सागरानंदसूरि के द्वारा सम्पादित “ आगमज्योत " मैगेजिन के सभी अंकों की सूचनाएँ क्षणमात्र में प्रदर्शित होती हैं.
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दूसरी पद्धति है, प्रकाशन के शोधप्रपत्र में मात्र विद्वान का नाम टाईप करके शोध करने से उस विद्वान के द्वारा सम्पादित, संशोधित, संकलित सारे प्रकाशनों की विस्तृत सूची देखने को मिलती है, जिसके अन्तर्गत उस प्रकाशन से सम्बन्धित सारी सूचनाओं के अतिरिक्त उसकी पुस्तकों की सभी नकलों की सारी सूचनाएँ, उस पुस्तक के पेटांकों व उन पेटांकों में प्रकाशित कृतियों की विस्तृत सूचनाएँ तथा अन्य कोई विशेष सूचनाएँ हों तो वे भी देखने को मिलती हैं.
इसी प्रकार कृति के शोधप्रपत्र में मात्र विद्वान का नाम टाईप करके शोध करने से उस विद्वान के द्वारा रचित सभी कृतियों की विस्तृत सूची देखने को मिलती है, जिसके अन्तर्गत उस कृति से सम्बन्धित सारी सूचनाओं के अतिरिक्त उसके साथ जुड़े हुए सारे प्रकाशनों, हस्तप्रतों तथा अंकों की विस्तृत सूचनाएँ अथवा अन्य कोई विशेष सूचनाएँ हों तो वे भी देखने को मिलती हैं.
उदाहरण के लिए यदि वाचक को 'उपा. विनयविजयजी' द्वारा रचित 'कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका' चाहिए अन्य किसी विद्वान की नहीं. ऐसी परिस्थिति में कृति के शोधप्रपत्र में मात्र विद्वान के खाने में विनयविजय और कृतिनाम वाले खाने में कल्पसूत्र टाईप करके शोध करने से विनयविजयजी की सुबोधिका टीका वाला कल्पसूत्र तुरन्त मिल जाता है.
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उसके नीचे उससे सम्बन्धित प्रकाशन तथा हस्तप्रत की सूचनाएँ भी पुस्तक नम्बर और हस्तप्रत नम्बर के साथ देखने को मिलती हैं. इस प्रकार हस्तप्रत के शोधप्रपत्र में विद्वान का नाम टाईप करके शोध करने से उस विद्वान के द्वारा किसी भी वर्ष में, किसी भी स्थान पर लिखे गए हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाएँ देखने को मिलती हैं.
कृति आधारित शोधपद्धति-जब कोई वाचक मात्र किसी कृति का नाम लेकर आता है कि आपके पास अमुक कृति अथवा इसके ऊपर लिखी हुई