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SHRUTSAGAR
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January-2016
जन्म लिया था। वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि यह संनिवेश दो भागों में विभक्त था, उत्तरी और दक्षिणी ।
कहा गया है कि ‘दाहिणमाहण कंडपुर-संनिवेस" में रहने वाले उषभदत्त की स्त्री के उदर में से उत्तरखतिय कंडपुर संनिवेस' के निवासी सिद्धार्थ की पत्नी के उदर में महावीर के गर्भ का स्थलांतर किया गया। इससे यह प्रतीत होता है कि कुंडपुर एक संनिवेश था जिसके दक्षिण में ब्राह्मणों और उत्तर में क्षत्रियों की बस्ती थी।
अन्य प्रकार से यह भी कहा जा सकता है कि 'कुंडपुर' नाम के दो अलग अलग संनिवेश थे, एक माहण कुंडपुर, और दूसरा खतिय कुंडपुर। प्रथम संनिवेश के दक्षिणी भाग में उषभदत्त रहते थे और द्वितीय संनिवेश के उत्तरी भाग में सिद्धार्थ रहते थे ।
भगवतीसूत्र के अनुसार तो ऐसा प्रकट होता है कि ब्राह्मण उषभदत्त “माहण कुंडग्गाम नयर” में रहते थे और उसके पश्चिम में 'खत्रिय कुंडग्गाम नगर” स्थित था जिसमें जमाली कुमार रहता था। वहाँ के अन्य वर्णनों से यह भी स्पष्ट होता है कि ये दोनों स्थल दूर नहीं थे। एक स्थल का कोलाहल दूसरे स्थल में सुनाई पडता था ।
यदि हम भगवतीसूत्र के पश्चिम दिशावाची इस उल्लेख के साथ आचारांग के दक्षिण और उत्तर दिशावाची उल्लेखों को समझने का प्रयत्न करें तो ये दो स्थल अलग सिद्ध होते हैं परंतु कल्पसूत्र के उल्लेखों से तो यही मालूम होता है कि ‘कुंडपुर' नाम का एक ही स्थल था, जिसमें ब्राह्मणों और क्षत्रियों की बस्ती वाले भाग क्रमशः ‘माहणकुंडग्गाम नयर" और 'खत्रियकुंडग्गामनयर " से पहिचाने जाते थे । इस सूत्र में दक्षिण और उत्तर का उल्लेख नहीं है।
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खत्तिय कुंडग्गाम में महावीर के जीवन सम्बन्धी अन्य घटनाओं के जो जो उल्लेख आते हैं उन अवसरों पर इस स्थल को मात्र 'कुंडग्गाम नगर' अथवा ‘कुंडपुर नगर” कहा गया है।
ऐसी अवस्था में भगवती सूत्र और आचारांग के उल्लेखों का समाधान इस प्रकार किया जा सकता है कि उत्तरपश्चिम में खतियकुंड था और दक्षिण पूर्व में
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