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SHRUTSAGAR
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January-2016
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तिलोयपण्णत्ति ही एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें जन्म स्थल का नाम 'कुंडल' दिया गया है। जयधवला में तो उसे ‘कुंडपुरनगर' ही कहा गया है" जो कल्पसूत्र के अनुसार है। जिनसेनाचार्य ने अपने हरिवंशपुराण में उसे 'कुण्डपुर पुर बतलाया है।" जो अन्य उल्लेखों से अलग पडता है । गुणभद्र का उत्तरपुराण तो इसे 'कुण्डपुर' के नाम से ही जानता है और पुष्पदन्त भी अपने अपभ्रंश महापुराण में इसे 'कुंडपुर' ही कहते हैं।
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इस विवरण का सारांश यह है कि आचारांग के अनुसार भगवान् महावीर के जन्म-स्थल का नाम 'कुण्डपुर' है । तित्थोगाली और अभयदेवसूरि की स्थानांगवृत्ति में भी यही नाम है । आचारांग में उसे स्पष्टतः एक संनिवेश बतलाया गया है।
भगवतीसूत्र और कल्पसूत्र में इस स्थल का नाम 'कुण्डग्गाम' हो जाता है और साथ ही साथ वह एक नगर भी बन जाता है । कल्पसूत्र में उसे 'कुंडपुर नगर' भी कहा गया है। परन्तु आवश्यक निर्युक्ति, आवश्यक भाष्य और विशेषावश्यक-भाष्य में उसे मात्र 'कुंडग्गाम' ही कहा गया है, उसके साथ ‘पुर' अथवा 'नगर' की संज्ञा नही जोडी गयी है। विमलसूरि तो उसे स्पष्टतः ‘कुण्डग्गामपुर’ कहते हैं। तत् पश्चात् के लेखक उसे संनिवेश, ग्राम, पुर, नगर इत्यादि सभी विशेषणों से आभिबोधित करते हैं ।
जैसे कि आवश्यकचूर्णि और हरिभद्रसूरि की आवश्यकवृत्ति में उपर्युक्त सभी नामों के अतिरिक्त उसे एक नगर भी बतलाया गया है। शीलंकाचार्य ‘कुंडग्गाम' और 'कुंडपुर' के नाम से तथा ग्राम और नगर दोनों तरह से उसका उल्लेख करते हैं। गुणचन्द्र ‘कुंडग्गाम' से उसका उल्लेख करते हुए उसे संनिवेश, नगर और पुर भी बतलाते हैं। हेमचन्द्राचार्य गुणचन्द्र की तरह उसे संनिवेश और पुर से अभिबोधित करते हैं।
दिगम्बर परम्परा में त्रिलोकपज्ञप्ति के सिवाय इस स्थल को 'कुंडपुर' ही कहा गया है जो आचारांग के अनुसार है । त्रिलोकप्रवृत्ति में उसे 'कुंडल' बताया गया है। सन्निवेश या ग्राम के रूप में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है परंतु नगर या पुर के रूप में उसका उल्लेख जयधवला और हरिवंशपुराण में मिल जाता है।
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