Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 8
________________ . श्रीपाल परित्र । तीसरा, दूसरा और पहला नर्क, तथा अपनवासी और व्यंतर जातिके देवोंका निवास है । इसके उपर इसी पृथ्वी पर सुदर्शन मेरुकी मुल जमीन १००० महायोजनसे लेकर उपर ९९०४० महायोजन प्रमाण ऊंचाईवाला १ राज लम्बा, चौडा तिर्यकलोक (मध्यलोक ) है। वहांपर मनुष्य और तिर्यच तथा व्यंतर और ज्योतिषी देवोंका निवास है। इससे उपर कुछ कम सात राजू तक कल्प (स्वर्ग) वासी देव, इन्द्र तथा कल्पातीतों (अहमिन्द्रों) का निवास है। और अन्त में सबसे उपर लोकशिखर पर तनवातवलय के अन्तिम भागमें ४५ लाख महायोजनामा गोल मनायले के बराबर क्षेत्रमें समस्त कमल कल कोसे रहित तथा अनन्तज्ञान दर्शन, सुख और वीर्यादि अनन्त गुणासे सहित नित्य निरजन अमुर्तीक अखण्ड त्रिलोक-पूज्य अनन्त सिद्ध परमात्मा अपनी२ सुखसत्ता अवगाहना युक्त, शुद्ध स्फटिकमणिके समान निर्मल शिलाके उपर स्वाधार तिष्ठ हैं । उन सिद्ध भगवानको मेरा सदा मन, वचन, कायसे अष्टांग नमस्कार होवे । उपर कहे अनुसार त्रस नाडीके बीचोंबीच ( उपर नीचे सातर राजू छोड़कर) जो एफ राजू प्रमाण चौकोर मध्यलोक है, उसमें जघन्य युक्ता संख्यात ( संख्या प्रमाण ) द्वीप और समुद्र हैं जो एक दूसरेको चूडीकी तरह घेरे हुए दूने २ । विस्तारवाले हैं । अर्थात् सबसे मध्यमें नाभिक समान १ लाख योजन४२००० कोसके व्यासवाला थालोके आकार गोल जम्बूद्वीप है । इसके सब ओर गोल दो-दो लाख योजन व्यासवाला (चौड़ा) लवण समुद्र, उससे सब ओर चार लाख योजन चौड़ा घातकी खण्ड द्वीप, इसकेआस पास आठ-आठ लाख योजन चौड़ा कालोदधि समुद्र है । इसके आसपास सोलहर योजन चौड़ा पुष्करद्वीप है। (इस द्वीपमें ठीक बोचमें, कोटकी भीतके समान अत्यन्त ऊँचा मनुष्योंसे अनुल्लम

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