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प्रकाशक की ओर से
अध्यात्म-साधना में, प्रतिक्रमण की बड़ी महिमा है जीवनशोधन की प्रक्रिया को ही वस्तुतः प्रतिक्रमण कहा गया है । प्रतिक्रमण अध्यात्म साधना का मूल आधार है ।
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प० विजयमृनिजी शास्त्री ने श्रावक प्रतिक्रमण - सूत्र लिख कर एक प्रशंसनीय कार्य किया है। शुद्ध मूलपाठ, अर्थ और व्याख्या; प्रस्तुत रूप में श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र के तृतीय संस्करण को प्रकाशित करते हुए हमें बड़ा सन्तोष तथा हर्ष हो रहा है । प्रारम्भ में सामायिक सूत्र भी शुद्ध मूलपाठ, अर्थ एवं संक्षिप्त व्याख्या के साथ इसमें जोड़ दिया गया है । प्रस्तुत पुस्तक में श्रावक के बारह व्रतों की व्याख्या और प्रत्येक व्रत के अतिचारों की व्याख्या सरल तथा सुगम भाषा में दी गई है । आशा है, पाठक प्रस्तुत पुस्तक से लाभ उठा कर लेखक और प्रकाशक के श्रम को सफल करेंगे ।
प्रस्तुत पुस्तक को सुन्दर बनाने में, और शीघ्रता से मुद्रित करने में मनोज प्रेस के प्रबन्धकों एवं कंपोजिटरों का श्रम सराहनीय है । उन्होंने जिस उदारता का परिचय दिया है, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है ।
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- ओमप्रकाश जैन. मन्त्री, सन्मति ज्ञानपीठ
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