Book Title: Shravak Pratikraman me Shraman Sutra ka Sannivesh
Author(s): Madanlal Katariya
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ 15,17 नवम्बर 2006 | जिनवाणी 323 समणत्तणं (अ.१६गा.४०,४१,४२) १७. सामण्णे (अ.१६गा.७६) १८. सामण्णे (अ.२०गा.८) १६. सामण्णस्स (अ.२२गा.४६) २०. सामण्णं (अ.२२गा.४६) २१. केसी कुमार समणे (अ. २३) २२. समणो (अ.२५गा.३१) २३. समणो (अ.२५गा.३२) २४.समणेणं (अ.२६सूत्र.७४) २५. समणे (अ.३२गा.४) २६. समणे (अ.३२गा.१४ व २१)। समणे(अ.३२ गा.१४ व २१)। नंदी सूत्र का प्रमाण- १. समण गण सहस्स पत्तस्स (गाथा ८ )। अनुयोगद्वारसूत्र के प्रमाण- १. समणे वा समणी वा (सूत्र २७)। समणो (सामायिक प्रकरण)- यहाँ बत्तीस आगमों में से चार आगमों के ही प्रमाण दिए गए हैं। शेष आगमों में आए प्रमाणों का उल्लेख करें तो काफी विस्तार हो सकता है। अतः अति विस्तार नहीं किया गया है। सभी जगह श्रमण का अर्थ 'साधु' तथा श्रामण्य का अर्थ 'साधुत्व' लिया गया है। इन प्रमाणों से यह बात सर्वथा सिद्ध है कि श्रमण का अर्थ साधु ही होता है। आगमों में कहीं भी श्रमणोपासक को श्रमण कहकर नहीं पुकारा गया है। प्रश्न आपने अनेक प्रमाण दिए, किन्तु भगवतीसूत्र में श्रावक को भी श्रमण कहा गया है। भगवतीसूत्र के २१,२० उ.८ में कहा गया है- “तित्थं पुण चाउवण्णाइण्णे समणसंघे पण्णत्ते तंजहा- समणा, समणीओ, सावया, सावियाओ! यहाँ श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविका चारों को श्रमण संघ के अन्तर्गत लिया गया है, जिससे मालूम पड़ता है कि श्रावक को भी श्रमण कहा गया है। उत्तर भगवतीसूत्र के इस पाठ में श्रावक को श्रमण नहीं कहा गया है। यहाँ 'समणसंघे' का अर्थ है श्रमण प्रधान संघ! श्रमण प्रधान संघ को यहाँ तीर्थ कहा गया है तथा उसी श्रमण प्रधान संघ के अन्तर्गत साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविकाओं को ग्रहण किया गया है। श्रमण प्रधान संघ का तात्पर्य है जिसमें श्रमण प्रधान हो एसा संघ। चतुर्विध संघ में साधु महाव्रती होने के कारण प्रधान होते हैं एवं श्रावक अणुव्रती होने से उनकी अपेक्षा अप्रधान होते हैं, यह बात विज्ञजनों से छिपी हुई नहीं है। अतः भगवतीसूत्र के इस पाठ के आधार से भी श्रावक को श्रमण कहना अनुपयुक्त है। प्रश्न 'समणसंघे' का अर्थ श्रमण प्रधान संघ कैसे होता है? उत्तर 'समणसंघे' यह पद एक समासयुक्त पद है। व्याकरण के अनुसार समासयुक्त पद का अर्थ विग्रह के माध्यम से किया जाता है। 'समणसंघे' यह मध्यम पद लोपी कर्मधारय समास से बना हुआ शब्द है। इसका विग्रह इस तरह होगा- श्रमण प्रधानः संघः श्रमणसंघः। जिस प्रकार 'शाकप्रिय पार्थिवः' में मध्यम पद 'प्रिय' का लोप होकर ' शाक पार्थिवः' शब्द बनता है, उसी प्रकार यहाँ भी 'श्रमण प्रधानः संघः में मध्यम पद 'प्रधान' का लोप होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11