Book Title: Shravak Pratikraman me Shraman Sutra ka Sannivesh
Author(s): Madanlal Katariya
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 10
________________ 331 ||15,17 नवम्बर 2006 | जिनवाणी सावग्गधम्मस" का उच्चारण करता है। अतः आवश्यक सूत्र में है, ऐसा कहकर साधु प्रतिक्रमण के पाठों को श्रावक प्रतिक्रमण में डाल देना कतई योग्य नहीं है। प्रश्न श्रमणसूत्र को श्रावक प्रतिक्रमण में बोलना सही मानना पड़ेगा क्योंकि किसी-किसी सम्प्रदाय में यह पाठ उच्चरित किया जाता रहा है। उत्तर यह पाट बोलना कब से शुरू हुआ इसका इतिहास तो ज्ञात नहीं है। प्राप्त प्रमाणों से इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल में यह परम्परा नहीं थी। प्रवचनसारोद्धार की गाथा १७५ की टीका करते हुए कहा है कि“सुत्तं तं सामायिकादिसूत्रं भणति साधुः स्वकीयं श्रावकस्तु स्वकीयम्" इसमें स्पष्ट बताया है कि साधु अपना सूत्र यानी श्रमण सूत्र कहे तथा श्रावक अपना सूत्र यानी श्रावक सूत्र कहे। यदि साधु एवं श्रावक को एक ही पाठ बोलना होता तो दोनों अपना-अपना सूत्र बोलें ऐसा कथन क्यों होता? ___क्रान्तिकारी आचार्य धर्मसिंहजी म.सा., जो कि दरियापुरी सम्प्रदाय के पूर्व पुरुष रहे हैं, ने भी श्रमण सूत्र का श्रावक प्रतिक्रमण में होना अनुचित बतलाया है। उनके वाक्य इस प्रकार हैं"श्रावक ना प्रतिक्रमण मां श्रमण सूत्र बोलवा नी जरूरत नथी कारण के श्रमण सूत्र साधुओं माटे छे। अने श्रावक ने प्रत्याख्यान (नवकोटिए) नथी तेनुं प्रतिक्रमण करवानुं होय नहि" किसी-किसी सम्प्रदाय द्वारा किए जाने मात्र से यदि श्रमण सूत्र को श्राावक प्रतिक्रमण में कहना वैधानिक मान लिया जाए तो माइक आदि विद्युतीय साधनों के प्रयोग को भी वैधानिक मानना पड़ सकता है, क्योंकि वह भी कुछेक सम्प्रदायों द्वारा आचरित है। आगमिक आधारों को प्रमुखता देने वाला साधुवर्ग एवं श्रावक वर्ग किसी भी परम्परा को तभी महत्त्व दे सकता है, जब वह आगम से अविरुद्ध हो। श्रावक प्रतिक्रमण में श्रमण सूत्र बोलना ऊपर बतलाये गए अनेक कारणों से आगमसंगत नहीं लगता। अतः किसी समय में किन्हीं के द्वारा श्रमणसूत्र को श्रावक प्रतिक्रमण में जोड़ कर परम्परा चला दी गई हो तथा किन्हीं ने अनुकरणशीलता की वृत्ति के अनुरूप उस परम्परा का अनुकरण कर भी लिया हो तो आगमिक आशय को स्पष्टतया जान लेने के पश्चात् उसे यथार्थ को स्वीकारते हुए श्रमण सूत्र को श्रावक प्रतिक्रमण से हटा देना चाहिए। यदि परम्परा को ही सत्य माना जाय तो किसकी परम्परा को सत्य माना जाया अनेक परम्पराओं के श्रावक बिना श्रमण सूत्र का प्रतिक्रमण करते हैं यथा- पंजाब के पूज्य अमरसिंहजी म.सा. की पंजाबी संतों की परम्परा, रत्नवंश की परम्परा, पूज्य जयमलजी म. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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